वक्षस्थल - कविता - तेज देवांगन

सब घूरते, मेरे तन बदन,
घूरते चेहरे, घूरते नयन।
घूरते मेरे तिल तिल चाल को,
घूरते मेरे काले घने बाल को।
घुरकर मेरी काया,
क्या तुमने कुछ समझ पाया।
मेरे वक्षस्थल पर जो उभार है,
तुम गिद्दो की नयन भार है,
जो मेरी प्रति तुम्हारी सरोकार है,
मेरी ममत्व, मेरी दुलार है,
ये तुम्हारी सोच, मेरा अधिकार है।

तेज देवांगन - महासमुन्द (छत्तीसगढ़)

साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिये हर रोज साहित्य से जुड़ी Videos