मौनालाप न चलें प्यार के संग - कविता - रमेश चंद्र वाजपेयी

ये मौनालाप
न चलें
प्यार के संग
गोरी तोरी
नजरिया के रंग।
तुम्हारा प्यार
जमा उर में
ज्यो मेहंदी का रंग
गोरी तोरी नजरिया के रंग।
मैंने न
सोचा था कि
प्यार करके रूठ जाओगी।
मैं बुलाऊंगा उर पास
की तुम दूर ही दूर जाओगी।
याद आती सारी रात
विभोर होत
मेरो अंग अंग।
गोरी तोरी नजरिया के रंग।
चुप्पी न साधो
तड़पाओ न हमको
सूने संसार में
जरूरत पड़ेगी तुमको।
चित्र सी खींच कर
आती तुम तन कर
तुम्हारी याद में
वेदना रह
जाती तड़पकर।
न रहत जो
संदा एक सो रंग
गोरी तोरी नजरिया के रंग।
रजनी में शांय शांय 
चलती कहती हवा।
यौवन के प्यासे है
ये दोनों मुकुल जवां।
गगन के तारे ये
कहते
मौनलाप छोड़ो
ऐसा अपने
को मोड़ो।
उतर आयो
उर में
न शरमायो है प्यार की जंग।
गोरी तोरी नजरिया के रंग।
ये मौनालाप चलें प्यार के संग
गोरी तोरी नजरिया के रंग।

रमेश चंद्र वाजपेयी - करैरा, शिवपुरी (मध्य प्रदेश)

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