उषा - कविता - कानाराम पारीक "कल्याण"

पक्षियों का मधुर कलरव, धरा हुई मगन,
मानो चूम रहे हो, धरती और गगन।
अंधकार को चीरती उषा की पहली किरण,
रेन-बसेरा छोड़ आए चिड़िया तितली हिरण।
अलसाएं पुष्प खुशबू बटोर खिल उठें,
बुलबुल तोता कोयल मोर बोल उठें।
मंदिर-मस्जिद गिरजों में आरती अजान चढ़ी,
निंद्रा छोड़ धरा संवर कर फिर जाग उठी।
इंसान आलस्य तज उत्साह से भर उठा,
अधूरा काम पूर्ण करने जोश में कर उठा।
चहूंओर मधुर स्वर-लहरिया गूँज उठी,
धरा नव-दुल्हन की तरह बन सज उठी।
मंद-मंद मनमोहक खुशगवार  हवा चल पड़ी,
लाल-लाल चुनरिया ओढ़े पत्तियाँ खिल पड़ी।
पक्षियों का मधुर कलरव, धरा हुई मगन,
मानो चूम रहे हो, धरती और  गगन।

कानाराम पारीक "कल्याण" - साँचौर, जालोर (राजस्थान)

साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिये हर रोज साहित्य से जुड़ी Videos