मुहब्बत ना रही - कविता - भागचन्द मीणा

सड़क ना रही वो गली ना रही।
फिजाओं में वो खुशबू ना रही।
जाइए ढूंढिए उस मुहब्बत को
जो अब उस मुहल्ले में ना रही।।

सपने बाकी है अब हकीक़त ना रही।
टुटती हुई सी तस्वीर में रंगत ना रही।
कभी  आबाद थी दिलों में मुहब्बत
अब प्रियतमा ना रही  प्रीति ना रही।।

चुड़ियों में पहले जैसी  खनखन ना रही।
जंग लगे घुंघरूओं में वो खनक ना रही।
चैन से सोता हूँ अब मैं सुबह देर तलक
नींदों में पहले जैसी अब खलल ना रही।।

भागचन्द मीणा - बून्दी (राजस्थान)

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