मैं भारत का संविधान हूँ - कविता - कानाराम पारीक "कल्याण"

संविधान सभा के अथक प्रयासों से ,
मैं विश्व के विधानों का वितान हूँ ।
अच्छे शासन संचालन का ताना बाना ,
मैं  भारत  का  संविधान  हूँ ।

संसार की अच्छाइयों को थामें ,
मैं  विस्तृत  और  महान  हूँ ।
सुख शान्ति व अमन का पक्षधर ,
मैं  भारत  का  संविधान  हूँ ।

नीतिप्रद और कर्त्तव्य-परायण ,
मैं राष्ट्रनीति का अनुशासन हूँ ।
घायल  हृदयों  को  सहलाता ,
मैं  भारत  का  संविधान  हूँ ।

क्रांतिकारियों के रक्त से सींचा ,
मैं आज़ाद भारत का बख़ान हूँ ।
बदत्तर हालातों से बाहर निकला ,
मैं  भारत  का  संविधान  हूँ ।

खेत खलिहान गाँव व चौपाल ,
कृषि-प्रधान देश की जान हूँ ।
सब नयनों के अश्रुओं को पोछता ,
मैं  भारत  का  संविधान  हूँ ।

इतिहास के गौरव में लिपटा ,
मैं भारतीय संस्कृति का ध्यान हूँ ।
आधुनिक भारत का भाग्य-विधाता ,
मैं  भारत  का  संविधान  हूँ ।

सबको बात रखने का हक देता ,
मैं दबे-कुचलों का स्वाभिमान हूँ ।
भीमराव की कलम से निकला ,
मैं  भारत  का  संविधान  हूँ ।

जगत् पटल पर धाक जमाता ,
मैं प्रगति-पथ का प्रावधान हूँ ।
मानवपन का अहसास कराता ,
मैं  भारत  का  संविधान  हूँ ।

वोट के बल शासक बना करता ,
मैं  लोकतंत्र  की  पहचान  हूँ ।
सबके  सपनों  को पूर्ण करता ,
मैं  भारत  का  संविधान  हूँ ।

मुझमें छुपा दीन-हीन का बल ,
मैं  अपाहिजों  का  सम्मान  हूँ ।
नर-नारी को समान समझता ,
मैं  भारत  का  संविधान  हूँ ।

धम्म-चक्र व अशोक स्तंभ संग ,
मैं  राष्ट्र गौरव  का  गुणगान  हूँ ।
सत्यमेव  जयते  के  लिए दृढ़ ,
मैं  भारत  का  संविधान  हूँ ।

अंध मान्यताओं को शून्य मानकर ,
मैं ढोंग-पाखंड बिना  विज्ञान हूँ ।
सबकी सोच को वैज्ञानिक बनाता ,
मै  भारत  का  संविधान  हूँ ।

धर्म-निरपेक्षता का आलम सजाएं ,
मैं हर  मसले  का समाधान हूँ ।
सफल जीवन की बुनियाद पर ,
मैं  भारत  का  संविधान  हूँ ।

समानता के अवसरों को बाँटता ,
मैं  स्वतंत्रता  का  व्याख्यान हूँ ।
हर  इंसान  की  आज़ाद श्वासें ,
मैं  भारत  का  संविधान  हूँ ।

मेहनत  से  बुलंदी  को  पाता ,
मैं हर पिछड़े का अरमान हूँ ।
अमीर गरीब की खाई पाटता ,
मैं  भारत  का  संविधान  हूँ ।

आज अमीर हाथों के शिकंजे में ,
मैं बना न्याय का संसाधन हूँ ।
नेताओं ने छलनी-छलनी किया ,
मैं  भारत  का  संविधान  हूँ ।

कुछ सिरफिरे मिटाने को आमादा ,
मैं झेल रहा आज अपमान यूँ ।
कभी सरेआम भी जल रहा ,
मैं  भारत  का  संविधान  हूँ ।

मेरे शत्रु शासन के गलियारों में ,
मैं कदम-कदम पर परेशान हूँ ।
आज  क्षत-विक्षत  हाल  मेरा ,
मैं  भारत  का  संविधान  हूँ ।

कानाराम पारीक "कल्याण" - साँचौर, जालोर (राजस्थान)

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