सोचा इस बार जरूर जाऊँगा छुट्टी दिवाली
मिलेंगे मेरे मित्र, माँ-बाप, बच्चें व घरवाली।
जगमग करते दीप जलेंगे शाम होगी निराली
सबकी संग में मनेंगी खुशियों वाली दिवाली।
लेकिन सीमा पर जवानों का कम पड़ा पहरा
घुसपैठियें भी शरहद पर ये डाल रखें थे डेरा।
सोचकर अनदेखा कर दिया मैंने छुट्टी जाना
अब क्या होली-दिवाली छुट्टी बाद में जाना।
दुश्मनों से लडूंँगा नहीं तो जितूँगा फिर कैसे
संघर्ष का में हूँ साथी लड़ाई से डरुँगा कैसे।
काँटो का केवल एक काम है पाँवो में चुभना
उनको में कुचलूँगा नहीं तो चलूँगा फिर कैसे।
जब सामने मेरे आया चेहरा अमर शहीद का
भूल गया मैं दिवाली पर छुट्टी जाना स्वयं का।
गणपत लाल उदय - अजमेर (राजस्थान)