बचपन - कविता - प्रेम राम मेघवाल

लकड़ी से पत्थर को मारता हुआ बचपन
पानी पर बुलबुलों सा तैरता हुआ बचपन ।।

ठोकर खाकर गिरता जमीन पर 
और उठकर जमीन को मारता हुआ बचपन ।।

जब आदमी की उम्र हो जाती है पचपन
तब उसे भी तो याद आता है बचपन ।।

बचपन की यादे बहुत याद आती हैं
जब देखता हूँ किसी बच्चे का बचपन ।।

माँ की ममता, भाई-बहिन का प्यार
पिता से मार खाकर सिसकता हुआ बचपन ।।

देखता हु जब बच्चो को, सुनता हूँ घुंघरुओं की  छन छन
तब मुझे बहुत याद आता है बचपन ।।

बुड्ढे आदमी का हिलता हुआ तनमन
उसे भी तो याद आता होगा बचपन ।।

इस नफरत के जंगल में  कहा आ गए हम
कितना हसीन कितना प्यारा था बचपन ।।

प्रेम राम मेघवाल - जोधपुर (राजस्थान)

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