युद्ध अभी शेष है (भाग ३) - कहानी - मोहन चंद वर्मा

दरबार में....
सम्राट: मंत्री जी राज्य में ये कौनसी महामारी फैल रही है।
मंत्री: सम्राट जब मुझे इस महामारी की सूचना जैसे ही मिली तो मैनें वैद जी को इस संबंध में पत्र लिखा।
सम्राट: वैद जी ने क्या जवाब दिया?
मंत्री: वैद जी को पत्र भेजे सात दिन बीत चुके थे पर वहाँ से कोई जवाब नहीं आया।    
सेनापति: सम्राट मैनें वहाँ एक सैनिक को भेजा तो उसे भी आज पाँच दिन हो गए पर वह भी लोटकर नहीं आया। और ना ही उसकी आने की कोई सूचना मिली।
सम्राट: समय से पत्र भेजे गए से लेकर अभी तक कोई संदेशा नहीं आया। आखिर क्या हो रहा है। बाहर राज्य के क्या हालात है। इस महामारी को लेकर।
सैनापति: देश-विदेश के बाहर के राज्यों में भी वहीं हालात है जो हमारे राज्य में है।

तभी द्वारपाल ने आकर कहा, ’सम्राट वैदजी का शिष्य महल में आ चुका है।’
सभी की नजर दरबार के द्वार पर थी। की तभी दरबार में वैद का शिष्य अंदर आता हुआ नजर आया। अंदर आकर उसने पहले सम्राट को प्रणाम किया फिर वहाँ उपस्थिति सभी को।
सम्राट: इतना विलम्ब क्यूँ?
शिष्य: देरी के लिए क्षमा चाहते है सम्राट...। 
सम्राट: वैद जी क्यूँ नहीं आए?
शिष्य: गुरू जी नहीं आ सकते क्यूँ की वे इस महामारी से ग्र्रस्त है। जब पत्र आया तो समझ में नहीं आ रहा था आखिर पत्र का क्या जवाब दे।
सेनापति: उसके बाद हमने एक सैनिक भेजा था।
शिष्य: सैनिक आया था। लेकिन वापस जाने में असमर्थ था।
सम्राट: असमर्थ था ऐसा क्या हुआ सैनिक को?
शिष्य: वह भी महामारी का शिकार हो चुका है।     
सम्राट: ये महामारी फैलती ही जा रही है। इसका कारण क्या बताया वैद जी ने।
शिष्य: गुरू जी ने ये पत्र दिया है।

मंत्री ने शिष्य से पत्र लिया और पढा।
प्रणाम सम्राट .....
         देरी के लिए क्षमा चाहता हूं। पत्र मिल चुका था।
पर जवाब में क्या लिखू मैं झूठा दिलासा देकर पत्र का जवाब नहीं दे सकता था।
इस महामारी का पहला मरीज कुम्हार मिला उसके बाद उसकी माँ जिसकी मृत्यु हो चुकी है।
पर कुम्हार की हालत में कुछ सुधार हुआ है जिससे ये पता चलता है की हम इस महामारी को समाप्त कर सकते है। ये भी पता चला है की ये रोग सभी राज्यो में कैसे फैला होगा?
जब व्यपारी मेला लगा था। वहीं ये रोग किसी एक व्यक्ति को था।
फिर उसके खासने, छीकने और छूने से ये रोग एक से दूसरे में फैलता चला गया।

इस रोग के फैलने की संभावना हवा भी है।
इस रोग के लक्षण श्वास लेने में परेशानी, सिर दर्द, बुखार, झूकाम, थकान और खासी।
साफ-सफाई और सुरक्षा ही इस रोग से बचाव है।
                                                 वैद जी......!
 
मंत्री: सम्राट माई ने कहा था। युद्ध कभी समाप्त नहीं होता प्रलय अभी शेष है।
सम्राट: तो माई का कथन इस महामारी को लेकर था।
सेनापति: भला एक रोग से कैसे युद्ध लडा जा सकता है।
शिष्य: युद्ध लडा जा सकता है सम्राट...।
सम्राट: कैसे...?
शिष्य: सावधानी और स्वच्छता जिसके कुछ नियम है।
सम्राट: क्या है वो नियम बताइए।
शिष्य: पहला नियम-गंदगी ना फैलाए। सफाई रखे।
दूसरा नियम-खासते और छीकते समय मुँह पर कपड़ा रखे।
तीसरा नियय-एक दूसरे से दूरी बनाकर रहे।
चैथा नियम-भीड जमा ना हो।
पाँचवा नियम-कुछ भी छूआ हो तो हाथ धोएँ कुछ भी खाने से पहले खाने वाली चीज को और हाथ को धोएँ।
बस इन पाँच नियमों का पालन ठीक प्रकार से हो तो सब ठीक हो जाएगा सम्राट....!
सम्राट: आज ही ऐलान करवाते है।
तभी एक संदेशवाहक हाथ में संदेश लेकर दरबार में आया। सम्राट को प्रणाम किया।
सम्राट: किसने भेजा है?
सैनिक: सम्राट ये पत्र आचार्य खगोलशास्त्री जी ने भेजा है।

मंत्री ने संदेशवाहक के हाथ से पत्र लिया और पढा।
 प्रणाम सम्राट .......
        मैं जो कहना चाहता हूँ इस पत्र में नहीं लिख सकता।
बात गुप्त है। मैं मिलकर ही बता सकता हूँ।
                                        आचार्य खगोलशास्त्री......!

सम्राट: आप जाइए और आचार्यजी से कहना सम्राट प्रतिक्षा कर रहे है। सेनापतिजी जैसे ही आचार्य जी आए उन्हें गुप्त कक्ष में ठहराए और मुझे सुचना दे। मंत्री जी आप इन नियमों को ऐलाल करवाइए और साथ में ये भी कहना जो भी इन पाँच नियमो का पालन नहीं करेगा। उसे 100 दिन तक कारावास की सजा या फिर मृत्यु दण्ड भी दिया जा सकता है। सैनिक संदेशवाहक से कहिए सम्राट ने दरबार में भुलाया है।

जब संदेशवाहक दरबार में उपस्थित हुआ तो सम्राट ने शिष्य से कहा, ’आप उन पाँच नियमों को एक बार फिर बोले शिष्य ने उन पाँच नियमों को फिर से दोहराया।
पहला नियम-गंदगी ना फैलाए। सफाई रखे।    
दूसरा नियम-खासते और छीकते समय मुहं पर कपडा रखे।
तीसरा नियय-एक दूसरे से दूरी बनाकर रहे।
चैथा नियम-भीड जमा ना हो।
पाँचवा नियम-कुछ भी छूआ हो तो हाथ धोएँ कुछ भी खाने से पहले खाने वाली चीज को और हाथ को धोएँ।
सम्राट: आप इन पाँच नियमो को सभी राज्यों के राजाओं को सुनाइए और कहना हमारे राज्य में इन नियमो का पालन ना करने वाले को 100 दिनों तक कारावास की सजा या फिर मृत्यु दण्ड दिया जा सकता है। आप भी अपने राज्ये में इन नियमों का पालन कराएँगे तो जो महामारी फैल रही है उसे रोका जा सकता है। ये युद्ध है हम सभी को मिल कर इस शत्रु पर विजय पाना है।

इस प्रकार सभी राजाओं ने अपने-अपने राज्य में उन पाँच नियमो का ऐलान करवाया। साथ ही ये भी कहा गया। की जो भी इन पाँच नियमो का पालन नहीं करेगा उसे 100 दिन तक कारावास की सजा या फिर मृत्यु दण्ड दिया भी दिया जा सकता है।

जारी... पढें अगले अंक में

मोहन चंद वर्मा - जयपुर राजस्थान

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