भागदौड़ जग में मची, चाह हृदय सिरमोर ।
लगा रहे तरकीब सब, छल प्रपंच हर ओर।।१।।
चाहत की सीमा नहीं, मचता भागमभाग।
कहाँ किधर किसके लिए, प्रलयंकर यह आग।।२।।
नाशहि काल विनाश काज़ पड़े कुसंगति शिष्य।
हाइटेक चिन्ता विरत, पीढ़ी और भविष्य।।३।।
कपट झूठ के तेज से, लूटा कोष प्रताप।
रक्त नया नव वक्त का, भोगेगा संताप।।४।।
गोल माल की जिंदगी, मुफ़्तखोर की ज़ान।
पलभर ही देती सुकूँ, अन्त बड़ा अपमान।।५।।
लानत है यह जिंदगी, आलसी कामचोर।
जीए खा हराम का, चापलूस चहुँ ओर।।६।।
सही सोच किस बात की, सत्ता मेरा लक्ष्य।
नोचेंगे जनकोष को, लोकतंत्र है भक्ष्य।।७।।
देश जाय अब भाँड़ में, बीता आज चुनाव।
किसी तरह सत्ता मिले, लूटें खाय पुलाव।।८।।
हो महान् यह देश नित, या भारत अपमान।
नेता हैं हम देश के, लूटेंगे सम्मान।।९।।
चिल्लाने के हेतु अब , चार दिवस हैं और।
देखो सत्ता भंगिमा, लगा रहे बस दौर।।१०।।
आदिकाल से आज तक, खाए माल हराम।
राजनीति में आज भी, मुफ्तख़ोर अविराम।।११।।
गेहूँ गुलाब बीच में, है गेहूँ का जोड़।
भौतिकता भारी पड़ी, मानवता को तोड़।।१२।।
लोभ मोह अपना परा, करे घात प्रतिघात।
तार तार आत्मीयता, कहाँ सुरीली बात।।१३।।
नेता मर्यादा विरत, कहाँ नीति की सीख।
बढ़चढ़ कर ये मीडिया, फूहरपन अरु चीख।।१४।।
इस चुनाव ने खोल दी, राजनीति की पोल।
मर्यादा आहत हुईं, सुन नेता की बोल।।१५।।
अब भी नेता पूछते, बंद हुई क्यों नोट।
संशय मन दुर्भाग्य से, हार मिले फिर चोट।।१६।।
भागदौड़ बस स्वार्थ में, चाहत मन अधिकार।
भाग रहे कर्तव्य से, मिले मुफ़त सरकार।।१७।।
लूट घूस करते ठगी, बनते नित वाचाल।
भागदौड़ नेतागिरी, हिंसा रत हर हाल।।१८।।
रहते खाते देश में, द्रोह करे निज देश।
पाक चीन भाषा मुखर, दंगाई परिवेश।।१९।।
कितनी भी दें गालियाँ, देश लुटाऊँ शीश।
नहीं चलेगी चाल अब, भारत में साज़ीश।।२०।।
डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली