सफलता यूँ ही नहीं - कविता - श्याम "राज"

सफलता यूँ ही नहीं मिलती कदम बढ़ाता रह तू
राह आसान नहीं पर आगे बढ़ता रह तू
आज नहीं तो क्या कल सब तेरे साथ होंगे
इस मिट्टी पर तेरे भी निशान होंगे
चलने लगा है जो आज गिर के फिर से
मंजिल उसी को बुलाती है आज फिर से
सफलता यूँ ही नहीं..........
देखा होगा तूने भी राहों में अनेक
आज तू भी उसी भीड़ का हिस्सा बन
देखेगा तू उसी भीड़ में कईयों को
गिर-पड-उठ संभालने वालों को
हौसला मत खोना देखकर गिरने वालों को
याद रखना तू..........
सफलता यूँ ही नहीं..........
देखना तुम एक बार संभल कर चलने वालों को
पैरों में होंगे छाले फिर भी आगे बढ़ने वालों को
धीरे-धीरे ही सही छोटे-छोटे कदम रखने वालों को
मंजिल खड़ी है बाँहे फैलाएं बुलाने आगे बढ़ने वालों को
सफलता यूँ ही नहीं..........
रख हौसला देखकर हौसला आगे बढ़ने वालों का
देख आज निशान मिट्टी पर गहरे बहुत हैं
आये बहुत-से तूफान उड़ी है मिट्टी राहों से
फिर भी आज दिख रहे हैं निशान आगे बढ़ने वालों के
डरना नहीं तू रख हौसला आगे बढ़ने का
याद रखना तू..........
सफलता यूँ ही नहीं..........
आज नहीं तो कल ही सही निशान होंगे तेरे भी
बढ़ गया जिस मंजिल की ओर बढ़ता चल तू
राह आसान होगी नहीं कदम तेरे डगमगायेंगे
देखना फिर से आगे को लड़खड़ाते कदम तुझे दिख ही जाएंगे
देखकर उनको फिर से हिम्मत करना आगे बढ़ने की
याद रखना तू..........
सफलता यूँ ही नहीं..........
देखकर हौसला तेरा मंजिल तेरी खुद-ब-खुद तेरे पास आएगी
बढ़ते रहना तू चलते जाना तू
आज नहीं तो कल तू भी वही होगा
बस ! याद रखना तू..........
सफलता यूँ ही नहीं..........


श्याम "राज" - जयपुर (राजस्थान)


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