नहीं भैये - ग़ज़ल - महेश कटारे "सुगम"

ये गजल वो ग़ज़ल नहीं भैये
जिस्म सूरत शकल नहीं भैये

बात महबूब की नहीं इसमें
कल्पना की फसल नहीं भैये

इसके शेरों की तख्तियां मत कर
इसमें उर्दू दखल नहीं भैये

हम ज़रूरत की बात करते हैं
कोई साजिश या छल नहीं भैये 

कथ्य पर शिल्प कर दिया कुरबाँ
जब मिला और हल नहीं भैये

तुम ग़ज़ल इसको गर नहीं मानो
तो भी हां कोई गल नहीं भैये

शिल्प को चाट लें या चूमें हम 
कथ्य जब तक सफल नहीं भैये

काम जो भी किया है पुख्ता है
काम यह भी सरल नहीं भैये

महेश कटारे "सुगम" - बीना (मध्यप्रदेश)

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