महेश कटारे "सुगम" - बीना (मध्यप्रदेश)
नहीं भैये - ग़ज़ल - महेश कटारे "सुगम"
शनिवार, अक्टूबर 17, 2020
ये गजल वो ग़ज़ल नहीं भैये
जिस्म सूरत शकल नहीं भैये
बात महबूब की नहीं इसमें
कल्पना की फसल नहीं भैये
इसके शेरों की तख्तियां मत कर
इसमें उर्दू दखल नहीं भैये
हम ज़रूरत की बात करते हैं
कोई साजिश या छल नहीं भैये
कथ्य पर शिल्प कर दिया कुरबाँ
जब मिला और हल नहीं भैये
तुम ग़ज़ल इसको गर नहीं मानो
तो भी हां कोई गल नहीं भैये
शिल्प को चाट लें या चूमें हम
कथ्य जब तक सफल नहीं भैये
काम जो भी किया है पुख्ता है
काम यह भी सरल नहीं भैये
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