बड़ी कला है दुश्मन को दोस्त बनाना - लेख - सुषमा दीक्षित शुक्ला

यह अपने आप में एक बहुत बड़ी कला है। 
प्रेम दुनिया की सबसे बड़ी ताकत है और बैर सबसे बड़ी संहारक शक्ति।

यूँ तो दोस्ती और दुश्मनी में आपसी रिश्ता होता है क्योंकि दुश्मन और दोस्त दोनों ही आप आपके ज़ेहन में कहीं न कहीं जरूर मौजूद रहते हैं। आपकी भावनाएं और आप उनके प्रति संवेदनशील रहते हैं।
फर्क यही है कि मित्रों के लिए आपके हृदय में प्रेम की भावना होती है और दुश्मनों के लिए आपके जेहन में नफरत की भावना होती है।

दोस्ती दुश्मनी जिंदगी के दो पहलू हैं, कभी कभी सबसे अच्छा दोस्त सबसे बड़ा दुश्मन बन जाता है तो कभी दुश्मन भी दोस्त बन जाता है, बस ये आपके व्यक्तित्व और व्यवहार पर निर्भर करता है।
एक ऋषि ने दुर्दांत डाकू रत्नाकर  को अपने व्यवहार से हृदय परिवर्तन कर अपना बना लिया था बाद मे वह महान ऋषि बाल्मीकि कहलाये जिन्होंने संसार को रामायण जैसा महान ग्रन्थ दिया।

महात्मा बुद्ध ने तमाम खूंखार दुर्दांत अपराधियों को जो उनके घोर दुश्मन थे, उनको अपने व्यवहार से अपना शिष्य बना लिया उनका हृदय परिवर्तन कर।

जब कोई व्यक्ति किसी दुश्मन को भी दोस्त बना ले तो समझ लेना चाहिए कि व्यक्ति बहुत ही समझदार एवं उदार है। जिन्हें दुश्मन को भी दोस्त बना लिया समझ लो बहुत बड़ा जादूगर है।

यह बहुत बड़ी कला है और यह सबके बस की नहीं है।
इसके लिए आपके अंदर क्षमा की भावना, उदारता और दया व कुछ मामलों मे प्रायश्चित करना, ऐसे संवेग हैं जिनके जरिये  दुश्मन भी दोस्त बन सकता है, बशर्ते उस दुश्मन को भी संवेदनशील होना चाहिए। अगर वह हृदय हीन है तो  आपकी क्षमा की भावना, आपकी उदारता की  भावना  व दयालुता व  आपका प्रयाश्चित भी  उसको उल्टा ही नजर आएगा।
तो ऐसा नहीं है कि दुश्मन को दोस्त बनाना असंभव है लेकिन थोड़ा मुश्किल जरूर है, लेकिन इतिहास गवाह है कि कई दफा दुश्मन भी दोस्त बन गए हैं।
मगर कभी कभी दुश्मन को दोस्त बनाना घातक भी साबित हुआ है।

अपने सदव्यवहारों से अपने नैतिक आचरण से हम दुश्मन का दिल भी जीत सकते हैं। उनका हृदय परिवर्तन कर सकते हैं। दुश्मन को दोस्त बनाया जा सकता है, क्योंकि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है वह दोस्त और दुश्मन के रिश्ते इसी समाज में रहकर बनाता और निभाता है। मानव मन में गुण दोष समाहित होते हैं।

जब किसी व्यक्ति में सत्य, अहिंसा, त्याग, सुचिता, करुणा कर्तव्यनिष्ठा जैसे गुण ज्यादा होते हैं तो उसके मित्र अधिक होते हैं ।इसके विपरीत यदि उसके व्यवहार में दोष अधिक होते हैं तो उसके दुश्मनों की संख्या अधिक होती है।

कभी-कभी दो दोस्तों में कटुता पूर्ण व्यवहार हो जाता है और वह दोस्त भी आपस में दुश्मन बन जाते हैं।
लेकिन हम किसी तीसरे को बीच में डालकर विचार विमर्श कर गलतफहमियां दूर कर क्षमा याचना द्वारा अच्छे भावों के द्वारा दुश्मन को दोस्त बना सकते हैं।
इसके लिए हमें सकारात्मक दृष्टिकोण रखना होगा ,ताकि हमारे अंदर बीती बातों को याद करके उथल पुथल न हो।
हमें सिर्फ और सिर्फ उसकी अच्छाइयों को याद करना होगा।

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि जब कोई तीसरा उसके बारे में बात करें तो उसकी बुराई करने की अपेक्षा उसके गुणों की बात करनी चाहिए। अक्सर लगाई बुताई, चुगली करने वाले लोग दो दोस्तों को दुश्मन बना देते हैं।
अपने व्यवहार के द्वारा दुश्मन बन चुके दोस्त फिर से दोस्त बना सकते हैं।
क्योंकि जीवन में प्रेम और सद्भावना का दीपक जलाएंगे तो दुश्मनी का अंधेरा दूर होगा।

सुषमा दीक्षित शुक्ला - राजाजीपुरम, लखनऊ (उ०प्र०)

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