कहाँ मिलेगी वो - कविता - प्रवीन "पथिक"

जिसकी आँखो की तलाश रहे।
जिसका जीवन को प्यास रहे।
ख़्वाबों में मिलकर मुझे;
        सताती है जो,
        कहाँ मिलेगी वो।
हर पल रहता जिसकी यादों में।
यूँ रहता खोया जिसकी बातों में।
न मिलने पर बेचैन सा;
        कर जाती है जो,
        कहाँ मिलेगी वो।
तारों में आती मुझको नजर।
दिल में बसी वो इस कदर।
किसी चेहरे मे दिख जाने पर;
        तड़पाती है जो,
        कहाँ मिलेगी वो।
तड़पाती मुझको वो दिन रात।
नहीं  करती  है  मुझसे  बात।
आँखों में आँसू बनकर;
        ढुलकाती है जो,
        कहाँ मिलेगी वो।
इक दिदार से  सारी  ख़ुशी मिल जाती।
मिलते मेरे दिलों की कली खिल जाती।
बसकर दिलों में ख़ुशबू सा;
        महकती है जो,
        कहाँ मिलेगी वो।
जिस पर करता  जीवन कुर्बान।
जिसके लिए तोड़ देता अरमान।
न समझती दिल को मेरे औे;
        बढ़ जाती है जो,
        कहाँ मिलेगी वो।
जो  मेरे  संगीत का  हो राग।
जिससे प्रेम का जलता चिराग।
प्रकाश बनकर मेरे जीवन में;
        फैलाती है जो,
        कहाँ मिलेगी वो।
बस! दिख जाए पकड़ लूं जिसे।
प्रेमधागे से बांध जकड़ लूं जिसे।
इतनी मेहरबानी कोई कर मुझपर;
        बता  दे  तो।
        कहाँ मिलेगी वो।

प्रवीन "पथिक" - कुसौरा बलिया (उत्तरप्रदेश)

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