गरीबी के कारण इनके पिता इन्हें पढ़ाने के बजाय मंदिर का पुजारी बनाना चाहते थे।
कम उम्र में ही इनका विवाह इनकी दूर की चचेरी बहन दस वर्षीय सिवाकुम से 1904 में हुआ। सिवाकुम को तेलगू भाषा के अच्छे ज्ञान के साथ अंग्रेज़ी भाषा का भी ज्ञान था।पाँच बेटियों और एक बेटेे (सर्वपल्ली गोपाल, देश के बड़े इतिहास कारक थे) के पिता डाक्टर राधाकृष्णन शिक्षा को सर्वाधिक महत्वपूर्ण मानते थे। शिक्षा के प्रति गहन रूझान का परिणाम यह था कि वे न केवल काफी विद्वान थे, बल्कि उनमें सदैव ही कुछ सीखने की ललक भी बनी रही। उन्होंने जिस कालेज से मास्टर डिग्री ली थी वहीं के उप कुलपति बनाए गये, लेकिन एक वर्ष में ही वे बनारस यूनिवर्सिटी के उप कुलपति नियुक्त हो गये। इन्होंने दर्शन शास्त्र पर कई किताबें भी लिखीं।
विवेकानंद और वीर सावरकर का इनके जीवन पर गहरा असर था। इनके बारे गहन अध्ययन करनेवाले डाक्टर राधाकृष्णन को दर्शन शास्त्र में महारत हासिल था। हिंदुत्व को देश में प्रचार प्रसार करने, हिंदू धर्म को देश व पश्चिमी देशों में फैलाने का उन्होंने प्रयास किया।
डॉक्टर राधाकृष्णन का मत था कि देश बनाने में शिक्षकों की बड़ी भूमिका होने के कारण देश में शिक्षकों का दिमाग सबसे उत्कृष्ट होना चाहिए।
आजादी के बाद पंडित जवाहरलाल नेहरु के विशेष आग्रह पर डॉक्टर राधाकृष्णन संविधान निर्मात्री सभा के सदस्य के रूप में 1947 से 1949 तक कार्य किया और अपने आचरण से सभी की प्रशंसा हासिल की। वे अनेक विश्वविद्यालयों के चेयरमैन भी रहे।
विदित रहे कि पंडित नेहरु द्वारा 14-15 अगस्त 1947 की मध्य रात्रि आजादी की घोषणा करने वाले हैं, की खबर अकेले डॉक्टर राधाकृष्णन को ही थी।
अपने अकादमिक जीवन से आगे बढ़ते हुए राजनीति में कदम रखा।
13 मई 1962 को वे देश के दूसरे राष्ट्रपति चुने गये। जहाँ चुनौतियों ने उनके मार्ग में बाधाएं खड़ी कर रखी थी। चीन और पाकिस्तान से युद्ध की विभीषिका, चीन से हार का दंश, दो प्रधानमंत्रियों की मृत्यु का दुःख भी इन्हें अपने कार्यकाल में देखना पड़ा।
इनके राष्ट्रपति बनने पर जाने माने दार्शनिक बर्टेड रसेल ने कहा था कि महान भारतीय गणराज्य ने एक दार्शनिक को राष्ट्रपति बनाकर प्लेटो को सही मायने में श्रद्धांजलि दी है और एक दार्शनिक होने के तौर पर मैं अत्यंत प्रसन्न हूंँ।
उनके राष्ट्रपति के कार्यकाल में हफ्ते में दो दिन बिना अप्वाइंटमेंट के कोई भी उनसे मिल सकता था।
गैर परम्परावादी राजनयिक डॉक्टर राधाकृष्णन देर रात होने वाली बैठकों में सिर्फ दस बजे तक ही भाग लेते थे।क्योंकि उनके सोने का समय हो जाता था।
डाक्टर राधाकृष्णन को 1954 में भारत के पहले सर्वोच्च नागरिक सम्मान से सम्मानित किया गया। इसके पूर्व सन् 1913 में ब्रिटिश सरकार ने 'सर' की उपाधि से सम्मानित किया था।
डॉक्टर राधाकृष्णन के सम्मान में 1962 से ही इनका जन्मदिन 05 सितंबर शिक्षक दिवस के रूप घोषित हुआ।विदित है कि दुनियाँ के सौ से अधिक देशों में अलग अलग तिथियों को शिक्षक दिवस मनाया जाता है।
1962 में ही डॉक्टर राधा कृष्णन ब्रिटिश एकादमी के सदस्य भी बनाए गये। पोप जान पाल ने जहाँ डॉक्टर राधाकृष्णन को 'गोल्डेन स्पर' भेंट किया गया, वहीं इंग्लैंड सरकार ने 'आर्डर आफ मेरिट' सम्मान से भी नवाजा।
दर्शन शास्त्र पर उन्होंने कई किताबें लिखीं। जिनमें 'गौतम बुद्ध:जीवन और दर्शन', 'भारत और विश्व', 'धर्म और समाज' शामिल हैं। डॉक्टर राधाकृष्णन मूलतः अंग्रेजी में ही लिखते रहे थे।
लम्बी बीमारी के चलते महान शिक्षाविद राजनेता डाक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन का 17 अप्रैल 1975 को निधन हो गया। शिक्षक दिवस के दिन देश के विख्यात/उत्कृष्ट शिक्षकों को सम्मानित भी किया जाता है।
मरणोपरांत इसी वर्ष 1975 में ही डाक्टर राधाकृष्णन को पहले गैर ईसाई व्यक्ति के रूप में अमेरिकी सरकार ने टेम्पलटन पुरस्कार से सम्मानित भी किया। यह पुरस्कार धर्म के क्षेत्र में उत्थान के लिए दिया जाता है।
डाक्टर राधाकृष्णन को चालीस वर्षो तक आदर्श शिक्षक की भूमिका और शिक्षा क्षेत्र में उनके योगदान को कभी भी भुलाया नहीं जा सकता।
शिक्षक दिवस के अवसर पर उनके लिए सच्ची श्रद्धांजलि यही होगा कि शिक्षा क्षेत्रों से संबद्ध लोग अपनी भूमिका का पूरी ईमानदारी से निर्वहन करें और देश के विकास में अपना पूर्ण योगदान दें।
शिक्षक समाज के
सुधीर श्रीवास्तव - बड़गाँव, गोण्डा (उत्तर प्रदेश)