जोड़ो से धड़क रहा है
क्या वो मेरे गलियों से,
देखो तो गुज़र रही हैं।
आज वर्षों बाद फिर मेरी,
धड़कने रूकने सी लगी हैं
ज़रा जाकर उसका हाल पूछ आ,
कहीं तबियत तो खराब नहीं हैं।
देख तो आ कहीं उसका,
चेहरा तो नहीं उतरा हुआ है
क्योंकि आसमा में आज,
चाँद भी नहीं निकला है।
आज तारों में चमक ही नहीं है,
आसमा का रंग भी धूमिल सी है
शरीर की सारी रोंगटे खड़े हो गये,
ज़रा पता कर वो ठीक तो है न।
आज फूलों में भी सुगँध नहीं,
भंवरे भी कहीं और भटक रहे हैं
धाराएँ भी विपरीत चल रही है
पता कर बता सब ख़ैरियत है न।
आज पता नहीं क्यों आँखे,
खुद-ब-खुद बरस रही हैं
मेरी नजरें उसे देखने को,
व्याकुल हो तरस रही हैं।
आज दिल धीरे से धड़क रहा है,
आँखे भी आज खूब बरस रही हैं
वो जाते हुए जनाज़े को देख आ,
कहीं जनाज़े में मेरा जान तो नहीं।
शेखर कुमार रंजन - बेलसंड, सीतामढ़ी (बिहार)