आजादी - कविता - नूरफातिमा खातून "नूरी"

अंगुली पकड़कर गर्दन पकड़ा था अंग्रेजों ने
गुलामी की जंजीर में जकड़ा था अंग्रेजों ने।

राजपूत, नवाबों को कैसे आपस में लड़ाया था,
हिन्दू मुस्लिम को आपस में भड़काया था।

किसान नील की खेती करने को मजबूर थे,
कुटीर उद्योग बंद हुए, सपने चकनाचूर थे।

राज्य हड़प कर सीमा का विस्तार करते थे,
भोले भाले भारतियों पर अत्याचार करते थे।

जन जन के मन में असंतोष बढ़ने लगा था,
आजादी पाने के लिए जोश बढ़ने लगा था।

अट्ठारह सौ सत्तावन को प्रथम स्वतंत्रता संग्राम हुआ,
ब्रिटिश सरकार की जड़ें हिल गयी, बदनाम हुआ।

किस किस का धैर्य, त्याग, बलिदान बताऊं मैं,
भगतसिंह, चंद्र शेखर किनका नाम गिनाऊं मैं।

हिन्दुस्तान तबाह, बर्बाद, बेरोजगार हो चुका था,
उन्नीस सौ सैंतालीस को देश आजाद हो चुका था।

कालांतर से देश निरन्तर विकास कर रहा है,
सामाजिक कुरीतियों का विनाश कर रहा है।

आइए चौहत्तरवां स्वतंत्रता दिवस मनातें हैं,
वीर शहीदों की यादों को सीने से लगातें हैं।

नूरफातिमा खातून "नूरी" - कुशीनगर (उत्तर प्रदेश)

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