प्रकृति की आवाज - कविता - मधुस्मिता सेनापति

आज एक नए  युग का आगाज हैं
धुंध नहीं यह तो प्रदूषण की आवाज हैं
स्वार्थ हासिल करने की उम्मीद से
तोड़ दिया हैं मानव आज प्रकृति से वो रिश्ता
मान कर यह उसका नया रिवाज है....

प्रकृति की आवाज सुनो
कल तक जो खामोश थी
आज वह चीख रही है
वही प्रकृति की आवाज सुनो....

दिन था जब मानव था प्रकृति के साथ
आज बदल गया है जमाना
बदल गई है मानव की आस
आज की सदी में हुई मंगल की तलाश
कल की सदी में होगी जंगल की तलाश....

इंसान बदल लो अपनी नज़रिया
और अपने स्वार्थ को तुम भूल जाओ
प्रकृति का है यह कीमती भंडार
तुम इस धरती के रखवाले बन जाओ....

इंसान बदल दो अपनी नीति
बदल दो अपने रिवाज
हिफाजत करते रहो प्रकृति की
सुन लो एक बार प्रकृति की आवाज....

अगर प्रकृति को तुम करोगे प्यार
वह भी बन जायेगी तुम्हारे यार
करने लगेगी वह तुम्हारी हिफाजत
यदि तुम प्रकृति सुरक्षा को
बना लोगे अपनी आदत....

मधुस्मिता सेनापति - भुवनेश्वर (ओडिशा)

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