बीते हुए लम्हें - कविता - चंदन कुमार "सावन"

चुपचाप देखना, फिर गले से लगाना,
याद है आज भी, वो तेरा रूठ जाना !
कितना खुशनुमा था, कितना था सुहाना,
मदहोशी में वो तेरा, मेरे होठों पर मुस्कुराना !

चुपचाप देखना, फिर गले से लगाना ,
याद है आज भी, वो तेरा रूठ जाना !

वो  सर्द-सी रातों में, जज्बात-ए-बातों में,
कैसे बच्चों-सा वो तेरा, मुझमें सिमट जाना !
ना ख्वाहिश थी तुझको, अलीशां मकां की, 
मेरी बाहों की बंदिशों को,
जन्नत-सा घर बताना! 

चुपचाप देखना, फिर गले से लगाना,
याद है आज भी, वो तेरा रूठ जाना !

कैसे दरिया के किनारे,
वो प्रेमगीत गाना,
कैसे एक-दूजे के ऊपर, वो पानी पर फिसल जाना! 
एक जिस्म और जान, चाहत की ख्वाहिशों में,
रात एक-दूजे की, बाहों में बिखर जाना !

चुपचाप देखना, फिर गले से लगाना,
याद है आज भी, वो तेरा रूठ जाना !

चंदन कुमार "सावन" - प्रतापगढ़ (उत्तर प्रदेश)

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