सत्संगति दुर्लभ जगत - दोहा - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"

सत्संगति    दुर्लभ    जगत , है    जीवन   वरदान।
रहें    नीति    सत्कर्म  पथ, मिले   प्रीति   पहचान।।१।।

रखें    सदा   विश्वास   मन , पाएँ   प्रभु   आशीष।
रथ   विवेक   मति सारथी , विनत   झुकाएँ शीश।।२।।

निज    निर्माणक  ख़ुद   बनें , धैर्य   बने  पतवार।
साहस   जीवन    नाव हो,  लक्ष्य सरित   हो पार।।३।।

उपकारी     जीवन   बने , भूलें     लोभ     प्रपंच।  
सजग   सरल गतिमान  पथ , चढ़ें  सफलता मंच।।४।।

मनःशान्ति    चल   ध्येय पथ, बन सहिष्णु संघर्ष।
आएँगे    बाधा    विविध , तोड़   बढ़ो      उत्कर्ष।।५।।

मितभाषी    श्रोता   बने , बोले    भाष     सुहास। 
प्रीति  नीति   नवनीत  बन , बचें   सदा   उपहास।।६।।

मातु  पिता    आशीष।   ले , बढ़ें प्रगति पद मान।
तेजस्वी   जो  श्रेष्ठ     हों , पाएँ     ज्ञान     महान।।७।।

लक्ष्य    सदा  उत्थान   का , सेवा   भक्ति स्वदेश।
हरी   भरी     वसुधा     बने , मानवता      संदेश।।८।।

साधु  समागम   भाग्य   से , पाए  मानव   लोक।
गंगा  सम  पावन  हृदय , जीवन   हो   आलोक।।९।।

साधु   सन्त   संसार   में , दर्पण   रहे   समाज।
सत्संगति जीवन विमल , नित नवयुग आगाज।।१०।।

डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली

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