खुद से दूर हो चुका हूँ - कविता - शेखर कुमार रंजन

आजकल खुद के बारे में सोचता,
क्यों? सोच कर ही डर लगता है
मैं कैसा हो गया हूँ ऐसा लगता है,
जैसे खुद से बहुत दूर हो गया हूँ।

मैंने कभी सोचा नहीं था जैसा,
आज बन गया हूँ मैं कैसे? ऐसा
सुना था परिवर्तन ही जीवन हैं
लेकिन जीवन में इतना परिवर्तन।

कल तक तरासता रहा खुद को, 
आज खुद से इतना दूर हो गया हूँ
कभी सोचा न था की खुद को ही,
खो दूँगा जमाने के इस भीड़ में।

आजकल खुद के बारे में सोचता,
क्यों? सोच कर ही डर लगता हैं।

शेखर कुमार रंजन - बेलसंड, सीतामढ़ी (बिहार)

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