दुश्मन को मार गिराना है।
लहू बहे शत्रु के सीने से,
दुश्मन को धूल चटा ना है।।
माथे लगाओ देश की माटी,
चट्टानों को तुम्हे हटाना है ।
तलवार नहीं जोश नया है ,
दुश्मन का गला दबाना है।।
दुश्मन की जब गोली बोले,
दर्द अपना तुम्हें मिटाना है।
याद रखो अपने वतन की ,
दुश्मन को दूर भगाना है।।
तोफे मुंह अपना खोलेंगी,
खुद का जोश जगाना है।
गिर जाओ तो उठना तुम,
दुश्मन को धूल चटाना है।।
तिरंगा है बस शान हमारी,
गावों को अपने भुलाना हैं।
वंदे मातरम गाकर हमको,
दुश्मन का सर झुकाना है।।
ऊंचा रहेगा ध्वज हमारा,
दुश्मन को समझाना है।
कदम-कदम आगे बढ़ना,
दुश्मन को धूल चटाना है।।
मयंक कर्दम - मेरठ (उत्तर प्रदेश)