बेटी है शृङ्गार जग - दोहा - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"

जीवन    की   पहली  किरण , पड़ी  मनुज इह लोक।
बेटी   बहना  माँ     कहो , पत्नी   बन     हर    शोक।।१।।

प्रथम    सृष्टि   की  अरुणिमा , करती जग  आलोक।
निर्भय   नित   सबला  करो , बिन  बाधा    या  रोक।।२।।

बढ़ा      मनोबल      बेटियाँ , करो   साहसी     धीर।
पढ़ा   लिखा   समरथ    करो , निर्माणक    तकदीर।।३।।

ममता    समता  प्रीति   की ,  तनया   नित   आगार।
भरी   सदा    करुणा   दया ,  खुशियाँ    दे    संसार।।४।।

गेह      रोशनी       बेटियाँ  , दीपशिखा       सम्मान।
परहित     रत      मेधाविनी , परकीया    बन    शान।।५।।

सरला    सहजा    मिहनती , चढ़     तनया   सोपान।
रचे      कीर्ति    संसार   को , पाती   हर     अरमान।।६।।

शक्तिशालिनी      बेटियाँ , भरो     मनसि     उत्साह।
रक्षण    नित    बेटी    करो , पूर्ण   करो   हर   चाह।।७।।

सींचो   स्नेहिल     बेटियाँ , बिना     किसी   मनभेद।
जीवन     हो    हर्षित   सुलभ , करो   नहीं   उच्छेद।।८।।

मानक   कुल    की     बेटियाँ , विधलेखी   उपहार।
जननी    भगिनी    बेटियाँ ,  महाशक्ति     अवतार।।९।।

बेटी    है    शृङ्गार   जग , रखो    लाज    सम्मान। 
साधन  बन    उत्थान   का , नार्यशक्ति     वरदान।।१०।।

धीर   वीर  योद्धा  वतन , शिक्षित    ज्ञान  विज्ञान।
कुशला नित नेत्री वतन , अभिनेत्री   कृति    गान।।११।। 

लालटेन    प्रतिबिम्ब।    नित , दर्शाती   अरमान।
चढ़े   ऊँचाई   प्रगति  पथ , बेटी  कुल अभिमान।।१२।।

संकल्पित      यायावरित ,  सहने    को    संघर्ष।
हर   बाधा  को     पार कर ,  चढ़े  सुता  उत्कर्ष।।१३।।

खिले निकुंज कीर्ति प्रभा ,बने चारु निशि  सोम।
लघु जीवन अनमोल धन,सुता विहग यश व्योम।।१४।। 

डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली

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