पिता त्याग सुख शान्ति को ,पूरण सुत अरमान।।१।।
लौकिक झंझावात को , पिता सहे चुपचाप।
धूप वृष्टि या शीत हो , यायावर संताप।।२।।
पूत चढ़े सोपान को , पिता सहे अपमान।
कर्ता भर्ता जनक बन , स्नेह सींच सन्तान।।३।।
संवाहक परिवार का , निर्वाहक नित समाज।
संघर्षक भर जिंदगी , निर्माणक सुत आज।।४।।
पूत पिता पति निर्वहण ,बड़ा कठिन यह काम।
करता पूरण संतुलित , मूक बना निष्काम।।५।।
पूत प्रगति बस चाह नित , पाए सुख मुस्कान।
दिवस रात्रि कर झूठ सच,धन अर्जन अपमान।।६।।
पूर्ण हुआ सुत लक्ष्य जब ,पितृभक्ति सह मान।
सेवा श्रद्धावनत हो , करे पिता सम्मान।।७।।
ममता नित पृथिवी समा ,दृढ़ पर्वत सम चित्त।
दानवीर बलिराज सम , हो पितु पूतनिमित्त।।८।।
जीवन दे जिस बाप ने,चुका सकूँ नहि कर्ज।
पाल पोष अस्तित्व दे , नित सेवन सुत फ़र्ज़।।९।।
पितृ दिवस पर आज हम,साश्रु नैन कर याद।
करता हूँ सादर नमन , दें आशीष प्रसाद।।१०।।
अर्पित है श्रद्धासुमन , अथक त्याग बलिदान।
कृतज्ञ सदा निकुंज है , पिता आप भगवान।।११।।
कमी खले बस आपकी , नहीं माथ पर छाँव।
सब खुशियाँ दी आपने , मैंने दी बस घाव।।१२।।
आप गये माँ भी गई , ममता छत्र विहीन।
आज अकेला लोक में , शोक रुदित श्रीहीन।।१३।।
जहँ भी हों आशीष दें ,रखें मातु का ध्यान।
शान्ति मिले नित आपको,मातु साथ सम्मान।।१४।।
अपराधी कुपूत मैं , किया न सम्यक् मान।
अवसादित हूँ मैं पड़ा , करें तात क्षमदान।।१५।।
आप पूत पहचान हैं , कुलपौरुष अभिमान।
सारस्वत सम्मान हैं , पिता आप हैं शान।।१६।।
डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली