निर्मलता चहुँमुख प्रकृति, सृष्टि बनी अभिराम।
स्वच्छ सरोवर नदी जल , नीलांचल श्री धाम।।१।।
हंसवृन्द प्रमुदित हृदय , नीलाम्बर को देख।
रैनबसेरा विमल जल , किया नमन विधिलेख।।२।।
दिव्य मनोरम दृश्य है , विमल शान्त परिवेश।
पवन स्वच्छ बहता मुदित , रोग मुक्त संदेश।।३।।
रम्या वसुधा निर्मला , बनी आज सुखसार।
हंसराज परिवार सह , करे प्रकृति आभार।।४।।
रोमाञ्चित अभिसार रत,स्वच्छ सलिल अवगाह।
प्रीति मिलन निच्छल हृदय, निर्भय बेपरवाह।।५।।
आज सरित बन चारुतम , इठलाती लखि तोय।
पुलकित मन स्वागत खड़ी,हंस चरण रज धोय।।६।।
बदला जन आचार जग , धरा प्रदूषण दूर।
निर्मल नभ जल भू अनिल, प्रीति प्रकृति दस्तूर।।७।।
तजो स्वार्थ पथ नित गमन , रक्षण करो निकुंज।
वृक्षारोपण सब करो , खिले प्रकृति रसपुंज।।८।।
रहे वायु जल नभ धरा , स्वच्छ विमल संसार।
रोग मुक्त जीवन सुखी , निर्मल मनुज विचार।।९।।
तरु गिरि नद कर्तन सरित ,बंद करो खल पाप।
जीवन धारा श्वाँस ये , बचो रोग संताप।।१०।।
रच निकुंज कवि कामिनी,सुन्दर जल नीलाभ।
जल विहार हंसावली,हो जग सुख अरुणाभ।।११।।
डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली