सृष्टि बनी अभिराम - दोहा - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"


निर्मलता    चहुँमुख  प्रकृति, सृष्टि बनी अभिराम।
स्वच्छ  सरोवर  नदी    जल , नीलांचल  श्री धाम।।१।।

हंसवृन्द    प्रमुदित  हृदय , नीलाम्बर   को   देख। 
रैनबसेरा  विमल जल , किया   नमन  विधिलेख।।२।। 

दिव्य   मनोरम दृश्य है , विमल   शान्त  परिवेश।
पवन स्वच्छ बहता  मुदित , रोग   मुक्त    संदेश।।३।।

रम्या  वसुधा    निर्मला , बनी  आज    सुखसार।
हंसराज  परिवार   सह , करे   प्रकृति    आभार।।४।।

रोमाञ्चित अभिसार रत,स्वच्छ सलिल अवगाह। 
प्रीति मिलन  निच्छल  हृदय,  निर्भय   बेपरवाह।।५।। 

आज सरित बन चारुतम , इठलाती  लखि तोय। 
पुलकित मन स्वागत खड़ी,हंस चरण रज  धोय।।६।।

बदला जन   आचार  जग , धरा    प्रदूषण   दूर। 
निर्मल नभ जल भू अनिल, प्रीति प्रकृति दस्तूर।।७।।

तजो स्वार्थ पथ नित गमन , रक्षण करो निकुंज।
वृक्षारोपण  सब   करो  , खिले प्रकृति रसपुंज।।८।।

रहे वायु जल नभ धरा , स्वच्छ  विमल  संसार।
रोग मुक्त जीवन सुखी , निर्मल मनुज   विचार।।९।।

तरु गिरि नद कर्तन सरित ,बंद करो खल पाप।
जीवन  धारा    श्वाँस  ये ,  बचो    रोग  संताप।।१०।।

 रच निकुंज कवि कामिनी,सुन्दर जल नीलाभ।
 जल विहार  हंसावली,हो जग सुख अरुणाभ।।११।।

डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली

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