हुकूमत को तेरी कुदरत समझ ना आज तक पाये - कविता - सुषमा दीक्षित शुक्ला



हुकूमत को तेरी कुदरत ,
समझ ना आज तक पाये
कहीँ इक इक निवाले को ,
बहुत से  लोग तरसे हैं ।
कहीँ  तो अन्न के पूरे
भरे गोदाम  सड़ जाएं ।
हुकूमत को तेरी कुदरत ,
समझ ना आज तक पाये।
न दी औलाद  बहुतों को ,
किसी की गोद  की सूनी ।
 
कोई  सड़क पर फेंक भी आये । ,
समझ  ये  राज ना  पाये ।
किसी का फेंका हुआ कचरा ,
किसी  का ताज  बन जाये ।
कोई है  दास बन जीता,
कोई  महाराज बन जाये।
हुकूमत को तेरी कुदरत ,
समझ ना आज तक पाये ।

सुषमा दीक्षित शुक्ला

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