लॉक डाउन में स्थानीय रोजगार वाकई खत्म होने के कगार पर - लेख - सुषमा दिक्षित शुक्ला


काम छोड़ कर घर लौटे सर्वहारा वर्ग से लॉक डाउन ने तो  जीने का सहारा ही छीन लिया है । चिलचिलाती गर्मी हो या कड़ाके की सर्दी या झमाझम बरसात पर  मौसम के थपेड़ों की परवाह किए बिना मेहनत कशों के भाग्य में 2 जून रोटी कमाने के लिए हांढ़तोड़ मेहनत करने के अलावा अन्य कोई विकल्प भी तो नहीं होता, लेकिन कोरोना संकट ने उससे उसकी मेहनत का यह अधिकार भी छीन लिया । हम कह सकते हैं कि करोना संकट ने आम आदमी को वाकई बहुत मुसीबतों में खड़ा कर दिया है । भवन निर्माण हो या दिहाड़ी मजदूरी, फैक्ट्रियों में कटिंग टेलरिंग ,कार्पेंट्री ,फिटर ,मशीनिस्ट कंबाइन चालक आदि तकनीकी काम करने वाले खाली ही तो बैठे हैं ।जो उद्योग चालू हुए उनमें सामाजिक दूरी के पालन की अनिवार्यता लागू होने से कई कामगारों को घर में बैठना पड़ रहा है । इससे घर  चलाना भी मुश्किल है । भवन निर्माण  बंद हैं जिससे मिस्त्री और मजदूरों का काम बंद  है ,जो बिल्डिंग मटेरियल की दुकान पर  काम करते थे उनका भी काम रुक गया है ,वही हाल मजदूर मिस्त्री का  भी है । बाजार में जो लोग दुकानों पर काम करते थे तो दुकानें बंद होने से उनका काम बंद  हो चुका है ।छोटे-मोटे लकड़ी के कारखाने मे जो काम करते थे वह भी बैठे है तमाम लोग स्थानीय कामगार जो काम किया करते थे वह  सभी  बेरोजगार हैं, उसी तरह गल्ला मंडी बंद है ,उसमें काम करने वाले तमाम लोग  बेरोजगार हो चुके  है । टैक्सी चालक, रिक्शेवाले ,छोटे-छोटे स्थानीय रोजगार वाले बेरोजगारी का दंश झेल रहे हैं ।

कोरोना का डर अलग सता रहा है ,भूख  अलग खाये जा रही है । परंतु फिर भी लॉक डाउन 3 के आधार पर कुछ परिस्थितियों को देखते हुए रेड जोन ,ऑरेंज जोनऔर  और ग्रीन जोन वाले क्षेत्रों में विभाजित किया गया है। जिसमें कई कार्यो  की छूट भी दी गई है । ग्रामीण क्षेत्रों में मनरेगा कार्य व कृषि संबंधी कार्यों को सामाजिक दूरी का पालन करने के नियम के साथ ही छूट दी गई है ।
परंतु जीवन पटरी पर लौटने मे अभी काफी वक्त लगेगा क्योंकि जान है तो जहान है । यह भी अंततः सत्य है ।
लेकिन यह भी कटु सत्य है स्थानीय रोजगार खत्म होने के कगार पर हैं ।

ईश्वर करें जल्दी से देश कोरोनावायरस  से मुक्त हो । फिर से सभी रोजगार पूर्ववत चालू हो सके एवं देश में खुशहाली एवं समृद्धि तथा शांति की लहर दौड़ सकें ,जीवन पटरी पर लौट सके।

सुषमा दिक्षित शुक्ला

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