मधुशाला सज महफ़िलें - दोहा - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"


गज़ब नीति सरकार की,कर मदिरा व्यापार।
विकट आपदा है वतन , जनता है    लाचार।।१।।

मधुशाला फिर से सजी ,नशाबाज गुलज़ार। 
गज़ब रोग उपचार यह , भाग  रहे    बेकार।।२।।

बाँट रहा जग दुआ वह , जिसे  स्वयं दरकार।
भूली जनता जाम ले , आमद   में    सरकार।।३।।

अंगराज शरमा   रहा , मधु   दान  को   देख। 
कोरोना शकुनी  करे , नाश मनुज अभिलेख।।४।।

खाने  के  लाले   पड़े, मचा    पलायन   देश।
मधुशाला  सज  महफ़िलें , क्या   देती   संदेश।।५।।

हो  वंचित  सब  लाभ से,  कामगार सरकार।
सजी शराबी आसियां ,  फँसा देश  मँझधार।।६।।

मार  मची  है लूट की , मधुशाला    अतिमूल्य।
मानो सब खुशियाँ मिली,प्रभु मिलन समतुल्य।।७।।

फँसी  मौत की  फाँस में , सिसक रहा संसार।
भोजराज  सम  दान दे  , मद्य मुदित सरकार।।८।।

लॉकडॉन उड़  धज्जियाँ, दो गज  दूरी  नीति।
कोराना     मंजूर    है , पर  शराब से    प्रीति।।९।।

शरहद पर  कुर्बानियाँ , नित  दे   वीर  जवान।
धूम मची जामे वतन , कैसी   भक्ति     ईमान।।१०।।

लाल  हरा   पीला  बँटा , गमनागम  है   रोक।
स्कूल कॉलेज बंद सब , ठेका हर सब  शोक।।११।।

कोराना   अवसाद  में , सबने  दी  धन   योग।
गज़ब रीति धन लालसा,मधुशाला रस   भोग।।१२।।

कोराना जख्मों  सितम , भूलो    दारू    पान।
गौरव   गाथा  देश  का ,  मधुशाला    सम्मान।।१३।।

सफल बने   ठेकागिरी , हालाहल    मधुशाल।
लखि निकुंज की लेखिनी,सरकारी गति हाल।।१४।।

डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नयी दिल्ली

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