गज़ब नीति सरकार की,कर मदिरा व्यापार।
विकट आपदा है वतन , जनता है लाचार।।१।।
मधुशाला फिर से सजी ,नशाबाज गुलज़ार।
गज़ब रोग उपचार यह , भाग रहे बेकार।।२।।
बाँट रहा जग दुआ वह , जिसे स्वयं दरकार।
भूली जनता जाम ले , आमद में सरकार।।३।।
अंगराज शरमा रहा , मधु दान को देख।
कोरोना शकुनी करे , नाश मनुज अभिलेख।।४।।
खाने के लाले पड़े, मचा पलायन देश।
मधुशाला सज महफ़िलें , क्या देती संदेश।।५।।
हो वंचित सब लाभ से, कामगार सरकार।
सजी शराबी आसियां , फँसा देश मँझधार।।६।।
मार मची है लूट की , मधुशाला अतिमूल्य।
मानो सब खुशियाँ मिली,प्रभु मिलन समतुल्य।।७।।
फँसी मौत की फाँस में , सिसक रहा संसार।
भोजराज सम दान दे , मद्य मुदित सरकार।।८।।
लॉकडॉन उड़ धज्जियाँ, दो गज दूरी नीति।
कोराना मंजूर है , पर शराब से प्रीति।।९।।
शरहद पर कुर्बानियाँ , नित दे वीर जवान।
धूम मची जामे वतन , कैसी भक्ति ईमान।।१०।।
लाल हरा पीला बँटा , गमनागम है रोक।
स्कूल कॉलेज बंद सब , ठेका हर सब शोक।।११।।
कोराना अवसाद में , सबने दी धन योग।
गज़ब रीति धन लालसा,मधुशाला रस भोग।।१२।।
कोराना जख्मों सितम , भूलो दारू पान।
गौरव गाथा देश का , मधुशाला सम्मान।।१३।।
सफल बने ठेकागिरी , हालाहल मधुशाल।
लखि निकुंज की लेखिनी,सरकारी गति हाल।।१४।।
डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नयी दिल्ली