लॉक डाउन 3.0 - लेख - तपन कुमार



दोस्तों , 
आज हम "कोरोना" के कारण हुए लॉकडाउन के तीसरे फेज़ में आ गये। आज से "Lockdown 3.0" प्रारम्भ हो गया है, लेकिन सबसे अच्छी बात ये है कि हम सबको लॉकडाउन का नतीजा देश में अच्छा देखने को मिला । बरे ही अफ़सोस के साथ कहना पर रहा है कि अगर अन्य देश भी समय रहते लॉकडाउन का पालन किये होते तो उनको ये दिन नहीं देखना पड़ता , उनको इतनी मौतों का सामना नही करना पड़ता ।

दोस्तों हम सब बहुत ही भाग्यशाली रहे है जो की हम भारत जैसे विशाल देश में पैदा हुए, यहाँ हमलोग भले ही कुछ संसाधनों में या आर्थिक मजबूती में अन्य देश के मुकाबले कम हो लेकिन मानवता, विश्वास और देश के प्रति प्रेम भावना में हमसे धनी कोई देश नहीं है। इसके प्रति हमे ज्यादा कुछ बोलने की जरूरत नहीं है हम सभी अच्छे से जानते है कि हमारे देश पे कभी भी संकट परा है तो हम सबने एक-जुट होकर इसका सामना किया है, और आज कर भी रहे है और करते भी रहेंगे, इसमें कोई संदेह नहीं है ।
तो हम सब को अब और भी ज्यादा सजग रहने की जरूरत है, जैसा की अब हरेक जिलों को अलग-अलग जोन जैसे-  रेड ,ऑरेंज और ग्रीन में बांटा गया है तो हमारा कर्तव्य बनता है की हम जिस जोन में भी हो उसके ऊपर सरकार के द्वारा जो भी दिशा-निर्देश दिए गए है उसका संपूर्ण रूप से पालन करे ।
कुछ चीजें जैसे "दो गज की दुरी" का पालन करना या जब भी घर से बाहर निकले "मास्क" का उपयोग करना, हाथ की सफाई हो या एक दूसरे की मदद करने का कदम इन सभी चीजों पे हमें पूर्ण रूप से अमल करना होगा तभी हम इस कालरूपी, विक्रालरूपी, मृतरूपी ऐवं नाशकर्णी महामारी "Covid 19" को जड़ से खत्म कर पाएंगे ।

हमें पूर्ण विश्वास है कि हम सब बहुत ही जल्द अपने देश को फिर से नई ऊर्जा, गति, शक्ति एवं सोच के साथ आगे बढ़ते हुए देखेंगे, ऐसा कहे की हम सबको इस कालरूपी समय के बाद नई सुबह का इंतज़ार है , जो की बहुत जल्द संभव होता दिख रहा है।
इसके लिए हम सब और हमारी सरकार सभी एक जुट हो कर कार्य कर रहे है और करते रहेंगे । बस जरूरत है हम सबको सजग, दृढ़ संकल्प व एक दूसरे पे भरोसा बनाये रखने का, खुद व अपने परिवार का और अपने आस-पास जिन्हें आपकी जरूत है उनका ख्याल रखने का ।
दोस्तों बहुत सारी बाते है जो आपके साथ लेखनी के माध्यम से साझा करना चाहता हु पर शब्द नही निकल रहा , कुछ चीजों के बारे में सोचकर ...................।

मैं सोचता हूं बहुत सारे भाई मजदुर के बारे मे जो अभी तक अलग-अलग जगहों पे फंसे पड़े है, घर परिवार से दूर होकर इस संकट का सामना कर रहे है। वैसे सरकार की कोशिश जारी है लेकिन खुद को उनकी जगह पे रख कर सोचता हूं तो ...शब्द नही है।
सोचता हूं उन छात्रों के बारे में जो फंसे पड़े है अपने घर से दूर, वैसे तो वो घर से दूर हमेशा रहते आये है पर ये मौका था जो अपने परिवार के साथ वक़्त बिता सकते थे पर अफ़सोस .................।

सोचता हूं उन माँ के बारे में जो अपने बच्चो से दूर है जिनके बच्चे हमेशा काम के, पढाई के वजह से दूर रहते आये पर यही वो मौका था साथ में समय बिताने का पर ऐसा नही हो पाया .......।
सोचता हूं जो हमेशा अपने परिवार के साथ रहने के बावजूद किसी काम से निकले थे और वही फंसे रह गए जिनके पास यही वक़्त था परिवार को वक़्त देने का पर ऐसा नहीं हो पाया ...। 
सोचता हूं उन लाखो मरने वालो के परिवार के बारे में जो उनकी आखरी साँस के वक़्त उनके साथ नही रह पाए या उनकी अन्तिम दर्शन भी न कर पाए ।  अफ़सोस है हमे की, देश के लिए शाहिद हुए वीर जवानों की अन्तिम यात्रा में, जो बहुत सारे लोग शामिल हो सकते थे नहीं हो पाए ।
क्या-क्या लिखू ....??????  

"जल्द से जल्द इन सभी मुसीबतों से निजात हो जाये ,
आरज़ू है फिर से हम एक दूसरे के साथ हो जाये" ।
आइए हम अपना एक और कर्तव्ये का पालन करते हुए अपने लेखनी की कला को पन्नो पे उड़ेलते हुए , लोगो के अन्दर उत्साह भरते रहे,  उन्हें प्रेरित करते रहे  और लोगो को "साहित्य" के बारे में  जागृत करते रहे । 
"साहित्य रचना " के तरफ से सभी देशवासी व इसके लिए लिखने वाले सभी साहित्य प्रेमी को मेरा बहुत बहुत आभार । 
इस सम्पादकीय को यही विराम देते हुए विदा ले रहा हूँ। फिर मिलेंगे.....। 
आप सबको साहित्य प्रणाम 🙏
तपन कुमार

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