कोरोना वायरस ने लॉक डाउन में लेखन को एक नया आयाम दिया है - लेख - सुषमा दीक्षित शुक्ला

कोविड-19 के चलते लोग घरों में रहकर पॉजिटिव बने रहने के लिए अपने स्तर से हरसंभव  प्रयास कर रहे हैं ,ऐसे में वक्त की नजाकत को देखते हुए लेखन में नया आयाम पनपा है। हर दिन एक नया लेखक, लॉक डाउन की कहानी लिख रहा है। वरिष्ठ लेखकों के साथ नई पीढ़ी के लेखक भी जुड़े हुए हैं। हम कह सकते हैं कि लॉक डाउन ने साहित्य की दुनिया ही बदल दी है।

नेट पर साहित्यिक बहस भाषाई साहित्य के लिए नई राह खोल सकती है। अन्य क्षेत्रों की तरह लिखने पढ़ने वालों की दुनिया भी को भी प्रिंटिंग युग से डिजिटल युग में जाने वाली है , क्योंकि इंटरनेट , पाठकों व श्रोताओं का इंटरएक्टिव मंच बन गया है। कोविड-19 के बाद भी लेखको व पाठकों की बड़ी तादाद में प्राप्ति होने वाली  है।
इंटरनेट राजपथ पर बनने वाली दिन रात की सूचनाये , मनोरंजन, पठन-पाठन की दुनिया की तरफ मुड़ने जा रही है। एक बात यह भी तय है कि लिखित से वाचिक परंपरा से दोबारा जोड़ रहा साहित्य भी इसका एक हिस्सा होगा। वजह यह है कि तालाबंदी से ऊब भरे समय में लोग नेट की तरफ बढ़ रहे लेखकों एवं मर्मज्ञ साहित्यकारों को पढ़ व सुन रहे हैं। जो किसी भी साहित्यकार के लिए हौसला अफजाई  एवं किसी पुरस्कार के तुल्य ही होता है। यह एक अच्छी प्रगति है एवं नए साहित्यकारों के लिए पहल भी। नए लेखकों के लिए शायद भाषाई साहित्य के लिए निरंतर आवाजाही का मार्ग भी प्रशस्त कर सकती है। वैसे तो हर साहित्यकार में एक विकट आत्म सम्मान और तीखा न्याय बोध होता है।

नये लेखको मे कोई आत्मकथा लिख रहा है, तो कोई संस्मरण, कोई शेर तो कोई कविता या फिर अलग-अलग  पटल पर लोग कोरोना को  लेकर अपने विचार एवं अनुभव साझा कर रहे हैं। लोग अपने जीवन अनुभव को जो जीवन के अंतरंग क्षणों से जुड़े हैं को भी सृजन का रूप दे रहे हैं। आजकल हर रचनाकार अपनी तरह से नेट पर खबरों में या ब्लॉक्स पर या साहित्यिक पत्रिकाओं के संस्करणों से जुड़ रहे हैं। फेसबुक पर रोज रोज लाइव आने की होड़ सी लगी हुई है , यह भी नए रचनाकारों के लिए प्रेरणा का कार्य कर रही है। घर बैठे ऑनलाइन सम्मेलन एवं गोष्ठियों को भी लेखन की तरफ आकर्षित करती है। लेखन के साथ-साथ प्रकाशन में तस्वीरों के पोर्टल पर प्रदर्शित होने से लोग अपने को प्रसिद्धि की तरफ खींचने की होड़ में लगे हैं, यह भी एक आकर्षण का बिंदु ही है जो लोगों को लेखन की तरफ आकृष्ट कर रहा है। जल्दी ही नई पीढ़ी समझ जायेगी  कि भारतीय भाषा साहित्य से अंतरंग होना कितना जरूरी है ।बिना अपनी मातृभाषा पर गहरी पकड़ के कोई भी साहित्य बहुत आगे तक नहीं जा सकता यह भी सत्य है।
लॉक डाउन में लेखन को नया आयाम देने का संपूर्ण श्रेय इंटरनेट को जाता है।

सुषमा दीक्षित शुक्ला
राजाजीपुरम , लखनऊ (उ०प्र०)

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