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कर्ण: सूर्यपुत्र की गाथा - कविता - चक्रवर्ती आयुष श्रीवास्तव
(यह काव्य कर्ण के जीवन के उतार-चढ़ाव, उनके संघर्ष, त्याग और वीरता की गाथा प्रस्तुत करता है। यह न केवल उनके शौर्य का गुणगान है, बल्कि स…
जाड़े के दिन - नवगीत - अविनाश ब्यौहार
हैं जाड़े के दिन औ' ख़ूब प्यारी लग रही धूप। हैं तृप्त लगते तालाब, कुँए, झील। काला-काला कौआ लगता वकील॥ बेचती चूड़ी-बिंदी मनिहारी– लग…
तुम रहो अज्ञात - कविता - अनमोल
भू-रज पर बन कली उठता बह नीर-नयन निश्छल कहता– बन प्राण बसे मुझमें जो तुम दल-शूल बीच आशा भरता; जीवन में, श्वास में, कण-कण में देते आभा …
रास्ता कोई भी हो - गीत - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
रास्ता कोई भी हो, बस संकल्प लक्ष्य दृढ़ चाहिए। विश्वास अन्तर्मन हो अटल, आश्वस्त श्रम फल चाहिए। निर्मल सदा श्रमजीवी चरित, रण संयम महारथ…
राम-राम - कविता - कर्मवीर 'बुडाना'
इंसानियत के नाते मैं हाथ जोड़ता हूँ, इंसान ग़ैर से भी 'राम-राम' करता हैं। मेरी पेशानी पे कोई हसीं हर्फ़ लिखा हैं, बस उसी के नाम क…
अजेय - कविता - चक्रवर्ती आयुष श्रीवास्तव
हारे क्यों थकान से, डरे क्यों तूफ़ान से। गिर बार-बार सही, फिर भी वार कर सही। राह में अड़चनें सही, हौसला बुलंद कर वही। रुकावटों से ना डर…
टूटे सपनें - कविता - प्रवीन 'पथिक'
टूट गए हृदय के सपनें, हो गया अश्रुमय जीवन। थक गईं आशा चरण के, वीरान पड़ गया मधुबन। चाह की बहती नदी थी, ख़ुशियों के पंख लगे थे। एक होने …
खिड़की - कविता - सूर्यकान्त शर्मा
घर में दीवार का एक ऐसा हिस्सा जिसके दोनों ओर के नज़ारे अलग हैं, बाहर से अंदर का कुछ अपना-सा अंदर से बाहर का सब बिखरा-सा वह एक छोटी-सी ज…
अधूरी कविताएँ - कविता - निखिल 'प्रयाग'
सुनो- तुम्हारी कविताएँ मुझे अधूरी सी क्यों लगती है, अधूरी सी? हाँ अधूरी सी...! जैसे! जैसे उसमें अभी बहुत कुछ है लिखने को; ओह..! मतलब…
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