संदेश
विधा/विषय "जान"
जान लुटाने के वास्ते - ग़ज़ल - अब्दुल जब्बार "शारिब"
बुधवार, अगस्त 12, 2020
ख़ाके वतन का क़र्ज़ चुकाने के वास्ते। तैयार हूँ मैं जान लुटाने के वास्ते। नग़में खुशी के लब पे सजाने पढ़े मुझे, मज़लूमियत को अपनी छुप…
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