संदेश
विधा/विषय "मंज़िल"
लेकिन क्या मैं सोचता रह जाऊँगा - कविता - गोपाल मोहन मिश्र
गुरुवार, जुलाई 08, 2021
रात में सूरज को तरसता हूँ, दिन में धूप से तड़पता हूँ, आख़िर क्या होगा मेरा...? मै हूँ कहाँ इस यात्रा में...? सोचता हूँ तो पाया! मुझे ना…
मिलेगी एक दिन मंज़िल - ग़ज़ल - ममता शर्मा "अंचल"
मंगलवार, जून 29, 2021
अरकान : मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन तक़ती : 1222 1222 1222 1222 मिलेगी एक दिन मंज़िल अभी यह आस बाक़ी है। अजी मकसद अभी तो ज़िंदगी क…
मंजिल का पता पूछो धार से - कविता - उमाशंकर राव "उरेंदु"
बुधवार, सितंबर 30, 2020
मंजिल वो नहीं होती जहाँ हम जाना चाहते हैं मंजिल वो होती है जहाँ वह हमें ले जाती है। यह अलग बात है कि हम मंजिल को देखते हैं और मंजि…
एक दिन मंज़िल मिल जाएगी - कविता - आलोक कौशिक
मंगलवार, अगस्त 18, 2020
ख़ुशियों का उजाला ज़रूर होगा बेबसी की ये रात बीत जाएगी कट जाएगा सफ़र संघर्ष का एक दिन मंज़िल मिल जाएगी खो गया है जो राह-ए-सफ़र …
मंजिलें - मुक्त - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
गुरुवार, मई 14, 2020
जीवन्त तक बढ़ते कदम, चाहत स्वयं की मंजिलें, नित बेलगाम इच्छाएँ, निरत कुछ भी कर गुजरने, ख़ो मति विवेक नित अपने, र…