मिलेगी एक दिन मंज़िल - ग़ज़ल - ममता शर्मा "अंचल"

अरकान : मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन
तक़ती : 1222 1222 1222 1222

मिलेगी एक दिन मंज़िल अभी यह आस बाक़ी है।
अजी मकसद अभी तो ज़िंदगी का ख़ास बाक़ी है।।

रहेगा कुछ दिवस पतझड़ उसे हँस कर गुज़ारेंगे,
डरें क्यों जानते हैं हम अभी मधुमास बाक़ी है।

निभाई है निभाएँगे उठाई है क़सम हमने,
ज़हन में आज तक भी दोस्ती की प्यास बाक़ी है।

बचे हैं चंद दिन ही उम्र के सब कह रहे हर पल,
दिवस गिनते नहीं हम इसलिए उल्लास बाक़ी है।

ज़माना कह रहा पर हार दिल हरगिज़ न मानेगा,
हमारे हौसलों में जीत का अहसास बाक़ी है।

सदा कोशिश रखो जारी सबक़ है याद बस इतना,
मिलेगी एक दिन मंज़िल अगर विश्वास बाक़ी है।

ममता शर्मा "अंचल" - अलवर (राजस्थान)

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