संदेश
विधा/विषय "छाँव"
आँचल की छाँव - कविता - रमाकांत सोनी
मंगलवार, अप्रैल 27, 2021
वात्सल्य का उमड़ता सिंधु माँ के आँचल की छाँव। सुख का सागर बरसता जो माँ के छू लेता पाँव।। तेरे आशीष में जीवन है, चरणों में चारो धाम माँ…
धूप-छाँव - गीत - डॉ. अवधेश कुमार "अवध"
मंगलवार, दिसंबर 08, 2020
कभी तुम धूप लगते हो कभी तुम छाँव लगते हो, शहर की बेरुखी में तुम तो अपना गाँव लगते हो। बताओ मैं भला कैसे कहूँ अपनों ने ठुकराया, सभी रा…
घनी छाँव बन जाइए - कविता - डॉ. विजय पंडित
गुरुवार, अक्टूबर 01, 2020
जिंदगी सबसे हँसी खुशी मिलजुल कर बिताइए..... आज के हालात में कल का कुछ पता नहीं गिले शिकवे शिकायत सब तुम भूल भी अब जाइए.... जिंदगी भर…
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