सम्पादकीय - समुन्द्र सिंह पंवार

दिनांक : 2 मई 2021

प्यारे पाठकों,
आज मैं आपसे कुछ कहना चाहता हूँ। आज हम एक कठिन दौर से गुज़र रहे हैं। हमारे कई परिचित परिवारों में परेशानी चल रही है। मेरा आप सभी से सविनय निवेदन है कि कोरोना महामारी के इस दौर में चाहे दूर बैठे ही सही जहाँ तक संभव हो सके हम एक दूसरे का हालचाल पूछते रहें, एक दूसरे का सहयोग करते रहें। अपनी तक़लीफ़ और आवश्कता बेझिझक एक दूसरे से साझा करें।

इस वक़्त न पैसा काम आ रहा है ना पहुँच काम आ रही है, जिस पर गुज़र रही है वही जानता है।
हम सिर्फ़ दुआ कर सकते हैं। कोशिश करें एक दूसरे की मदद करने की जहाँ तक संभव हो सके। इंसानियत अपने दिल में क़ायम रखें और एक दूसरे का सहयोग करते रहें।
अपना भी बचाव रखें और दूसरों को भी प्रेरित करें |

परमात्मा से यही कामना है कि आप सब स्वस्थ रहें, सुरक्षित रहें, सकुशल रहें।
अपने घर में रहे। घर से बाहर आवश्यक ना हो तो ना निकलें। निकलना भी हो तो मास्क लगाएँ, साबुन से बार-बार हाथ धोते रहें, सैनिटाइजर का इस्तेमाल करें।
जो इस महामारी की चपेट में आए हैं प्रभु उन्हें जल्द स्वस्थ करें और जो प्रभु चरणों में लीन हो गए परमात्मा उन्हें अपने चरणों में स्थान दें।

फिर से यही कहूँगा इंसानियत के नाते एक दूसरे के काम आते रहें, मदद करते रहें, सहयोग करते रहें।
ये वक़्त भी गुज़र जाएगा। दवा से ज़्यादा हौसले की ज़रूरत है। किसी भी परिस्थिति में मनोबल ना गिरने दें।
हौसले भी किसी दवा और हक़ीम से कम नहीं होते। हर तक़लीफ़ में ताकत की दवा देते हैं।

आपका
समुन्द्र सिंह पंवार
सम्पादक - साहित्य रचना ई-पत्रिका

★★★

दिनांक : 27 अप्रैल 2021

लॉकडाउन की ख़बर सुनते ही शराब की दुकानों पर टूट पड़ते हैं, दो रुपये का नींबू दस रुपये में बेचने लगते हैं। 
तीस रुपए का प्याज सौ रुपये में बेचने लगते हैं। पच्चीस का परवल अस्सी में बेचने लगते हैं। मरीज़ों के लिए ऑक्सीजन की कमी सुनते हैं तो ऑक्सीजन की कालाबाज़ारी शुरू कर देते हैं।

हम मरीज़ को महम से दिल्ली पहुँचाने की बात देखते हैं तो दस से पन्द्रह हज़ार किराया माँगने लगते हैं। महम से हिसार के लिए दस हज़ार माँगते हैं। महम से चंडीगढ़ के लिए बीस से पच्चीस हज़ार माँगते हैं। महम से रोहतक के लिए पाँच हज़ार माँगते हैं।

दम तोड़ते मरीज़ों की दुर्दशा देखते हैं तो रेमडेसिविर इंजेक्शन में पैरासिटामोल मिलाकर बेचने लगते हैं।
हम जब मरीज़ों पर जान की आफ़त देखते हैं तो लाखों का बिल बनाकर चूसना शुरू कर देते हैं। हम मरीज़ों के लिए ज़रूरी दवाओं के नाम जानते हैं फिर उनको स्टोर करना शुरू कर देते हैं।

वास्तव में हम बहुत मासूम हैं... या लाशों का माँस नोचने वाले गिद्ध।

आपका
समुन्द्र सिंह पंवार
सम्पादक - साहित्य रचना ई-पत्रिका

★★★