आकुलता - गीत - सुशील कुमार
सोमवार, मार्च 03, 2025
सघन गहन सम प्रेम भुवन में अगणित बार जताए तुम
आशाओं का मेरा सूरज डुबता देख न पाए तुम
अक्षत अक्षत मेरे सपने रंग प्यार का हल्दी में
शहनाई में क्रंदन मेरा समझ न पाए जल्दी में
मधुरिम परिणय की बेला को धुन-धुन मन मुस्काए तुम
आशाओं का मेरा सूरज डुबता देख न पाए तुम
ले तूणीर अखेटक आया सघन प्रेम के उपवन में
निज उल्लास हेतु किंचित क्यों खेद वह लाए निज मन में
किंतु कहो क्या निज अनबन को कभी कही प्रकटाए तुम
आशाओं का मेरा सूरज डुबता देख न पाए तुम
वो मधुरिम सौगंधों के पुल, नवल स्नेह प्रत्याशित था
हृदय अभेद्य प्रेम के शर से आख़िर हुआ पराजित था
तत्क्षण मन में विरहानल का क्यों ना भय उपजाए तुम
आशाओं का मेरा सूरज डुबता देख न पाए तुम
जाओ मेरी स्नेह रश्मियाँ तुमको पथ दिखलाएगी
किंचित भी मम स्मृतियाँ ना हिय को क्षुब्ध कराएँगी
आकुलताएँ मात्र हृदय की, आख़िर क्यों भरमाए तुम
आशाओं का मेरा सूरज डुबता देख न पाए तुम
सघन गहन सम प्रेम भुवन में अगणित बार जताए तुम
आशाओं का मेरा सूरज डुबता देख न पाए तुम
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