कारण पता नहीं - कविता - प्रवीन 'पथिक'
शुक्रवार, नवंबर 08, 2024
पूरी रात,
सो नहीं सका मैं!
कारण पता नहीं!
शायद! उम्र बढ़ने से नींद प्रायः घटने लगती है।
भय मिश्रित चिंता,
हावी रहता है मन पर;
मेघों की तरह।
कारण पता नहीं!
शायद! अधिक डिग्री हासिल करने से,
व्यक्ति चिंतनशील हो जाता है।
जीवन घिर गया है,
एक रिक्तता से।
ख़्वाब, बादलों की तरह छंटने लगे हैं।
कारण पता नहीं!
शायद! उम्र बढ़ने से इच्छाशक्ति क्षीण होने लगती है।
अच्छा लगता है एकांत में बैठना।
घंटों बैठे अपने निजी पुस्तकालय को निहारना
भी अच्छा लगता है।
पर; पुस्तकों को छूना या पढ़ना
अच्छा नहीं लगता।
कारण पता नहीं!
शायद! चिढ़ हो गई है इन पुस्तकों से; पुस्तकालय से।
और भी बहुत कुछ होने लगा है;
जीवन में।
क्यों हो रहा है?
कारण पता नहीं।
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