आस - कविता - मयंक द्विवेदी

आस - कविता - मयंक द्विवेदी | Hindi Prerak Kavita - Aas - Mayank Dwivedi. Hindi Motivational Poem
जब सुख की बात करे मन तो
दुख का ध्यान रहे अवचेतन में
चाहे दुख की रजनी हो नभ में
फिर भी सुख की आस उगे मन में

जब सर सूखे थे तो
क्या नन्ही कलियाँ नहीं मुरझाई थीं
जब पतझड़ की अग्नि में जलकर
पल्लव ने ख़ूब चीख़ पुकार मनाई थी
जब श्यामों की सिंदूरी पर
रातों ने स्याह लगाई थी
जब सूरज को ढकने को
बादल ने ली अंगड़ाई थी।

कौन रहा अविनाशी जग में
पर समय का पहिया चलता है
देखो रजनी के सीने को चीर कर
सुख का सूरज निकला है।

देखो सावन की बदली से फिर
ताल भरे सब पलभर में
देखो रीते सोतो से फिर
कंचन धवल नीर बहा बंजर में

पल्लव के नव कोपल देखो
उत्पल-उत्पल मधुकर गुंजन देखो
झरनों की अठखेली से फिर
नन्ही कलियाँ मुसकाई हैं
देखो दफ़न वसुधा आँगन ने
बीज बरगद बनके उगला है।


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