निशा - कविता - मयंक द्विवेदी

निशा - कविता - मयंक द्विवेदी | Hindi Prerak Kavita - Nisha - Mayank Dwivedi. Hindi Motivational Poem
चाँद की चंचल किरणों में
ये रैन कुछ नया बुन रही
समझो मन्द-मन्द ही सही
पर ये रात आगे बढ़ रही।

रैन में सब थमा पर
धड़कने तो चल रही
कुछ आस के कुछ जीत के,
चेतना को संग लिए
सपने नूतन गढ़ रही।

हर प्रहर की अपनी कहानी
हर घड़ी कुछ कह रही
जो लकीरें मुस्कान की थी
बन चिंता की वो लकीरें
ललाट पर जा पड़ रही।

सुख-संतोष के जो नयन
डूबे नींद के आग़ोश में
क्यों वेदना से भरे नयन,
रात उनको अब खल रही।

अम्बर पनघट में टूटते तारों से
लौ लिए, ऊषा की पौ फट रही
खोल कर तो देख आँखें
निशा दुख भरी ये ढल रही।


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