सुनीता प्रशांत - उज्जैन (मध्य प्रदेश)
कृष्ण - कविता - सुनीता प्रशांत
सोमवार, अगस्त 26, 2024
कृष्ण तो बस कृष्ण थे
सुंदर चितवन नंद नंदन थे
बालक थे तो जैसे चंचल मन
युवा वस्था जैसे वसुंधरा वसन
स्मित हास्य हो जैसे हरित धरा
आनन जैसे नभ हो तारों भरा
पग जैसे कोमल कोमल दव
आहट जैसे मधुर कलरव
धन्य हुई वो देवकी की कोख
मोक्ष पा गई वो यशोदा की गोद
यमुना पावन हुई सानिध्य पाके
भाग्य खुल गए गोपीकाओं के
शुभ हुआ वो कारागृह मथुरा का
जन्मभूमि बना परमेश्वर का
अमृत कलश हुआ गोकुल सारा
धन्य हुई ये महाकाल की धरा
ऋषि संदीपनी भाग पा गए
साक्षात ईश्वर को सीखा गए
सुदामा को अपना सखा बना
मैत्री अनुपम एक बानगी बना
कुब्जा मालिन थी वो शापित
प्रभु मिलन से हुई उद्धरित
रुक्मिणी, सत्यभामा थीं ही सदा
पर पुण्य पा गई संग जुड़ के राधा
चितनंदन का जो ध्यान धरा
अमरत्व पा गई दासी मीरा
सखा कृष्ण सा मिला द्रोपदी को
कौनतेय बना गए सारथी प्रभु को
अभागा था वो बस एक दुर्योधन
जो समझ न सका प्रभु प्रेम का धन
हम भाग्यवंत जो जन्मे यहाँ
कृष्ण जिस देश जन्मे जहाँ
आशीष मिले भगवन यही सदा
जिएँ हम गीता सुने उपदेश तथा
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