कुछ न होते हुए झूठे अरमान में है - कविता - उमेन्द्र निराला

कुछ न होते हुए झूठे अरमान में है - कविता - उमेन्द्र निराला | Hindi Kavita - Kuchh Na Hote Huye Jhoothe Armaan Mein Hai - Umendra Nirala
कुछ न होते हुए झूठे अरमान में है,
पर कटा परिंदा भी अब उड़ान में है।
रहे शिकन माथे पर कस रहे थे ताने,
जीत हुई निश्चय तो सारा जहान है।

गाँव के वो ढह रहे आशियाने,
बना रहे शहर में वो जर्जर मकान है।
हैरान है, सब तल्ख़ इस बात पे,
मुनासिब से कहीं ऊँची लगान है।

देखकर जो दिखा चेहरे का शोर,
छिपे चेहरे में जंगल सा सुनसान है।
सहमा रहा वह अपनों के तकरार में,
लोग समझते रहे उसमें अब भी थकान है।

नाविक जो धैर्य न खोए मझधार में,
तसव्वुर है कि, उसमें साहस का ऊँचा तूफ़ान है।
विरासत कि बुलंदियों के पुल बाँध रहे है,
फ़क़त ये है कि, ये ख़ुद कि पहचान है।

उमेन्द्र निराला - हिंनौती, सतना (मध्यप्रदेश)

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos