ओह गिरधर! मुरली वाले - गीत - महेश कुमार हरियाणवी
बुधवार, जुलाई 24, 2024
तुम्हें नित नए रंग में पूजें,
सब रूप-रूप से निराले।
ओह! गिरधर मुरली वाले,
मेरे गिरधर मुरली वाले।
तेज़ ने तेरे विश्व हिलाया,
देव, गुरु, जन देख रहे थे।
हरि से मिलने हर घर आए,
रसा रत्न रस बरस रहे थे।
रहे ममता के मतवाले,
मेरे गिरधर मुरली वाले।
माखन खाकर मायाकर ने,
कितनों की लाज बचाई थी।
प्रेम तत्व से तृप्त किया फिर,
हार को जीत बनाई थी।
संगीत पे जगत नचाले,
मेरे गिरधर मुरली वाले।
प्रीत में पावन मन भावन,
आभा आपकी आप निराली।
चाल-चलन की बात बताऊँ,
पग-पग पर बिखरी हरयाली।
खिले प्रेम के रूप निराले,
मेरे गिरधर मुरली वाले।
बीच समंदर जा के अंदर,
द्वारका नगरी बसाई थी।
मथुरा को ख़ुशहाल किया,
वो, रघुवर की करुणाई थी।
ख़ुद शांति आप सँभाले,
मेरे गिरधर मुरली वाले।
इतिहासों के पन्ने बोलें,
महाभारत जैसी सीख कहाँ।
मैदा की धर्म विजय गाथा,
दे गीता का उपदेश जहाँ।
रहे रथ की डोर सँभाले,
मेरे गिरधर मुरली वाले।
तुम्हें नित नए रंग में पूजें,
सब रूप-रूप से निराले।
ओह! गिरधर मुरली वाले,
मेरे गिरधर मुरली वाले॥
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