युद्ध का औचित्य - कविता - गिरेन्द्र सिंह भदौरिया 'प्राण'

युद्ध का औचित्य - कविता - गिरेन्द्र सिंह भदौरिया 'प्राण' | Hindi  Kavita - Yuddh Ka Auchitya. Hindi Poem On War. युद्ध पर हिंदी कविता
जब भ्रम ही सच्चा लगता हो, तब सत के पथ पर कौन चले।
जब द्वार खड़े हों वायुयान, घोड़ों के रथ पर कौन चले॥

तिलमिला उठे जब बर्बरता, कुलबुला उठे जब दानवता।
जब दुष्ट शक्ति हो बुद्धिजीत, संकट में हो जब मानवता॥

लेखनी सँभल कवि धर्म निभा, फिर बहा शान्ति की रस-सरिता।
रुक सके काल के घटाटोप, काले मेघों की तत्परता॥

तू बता कौन जग जीत सका, जा महाकाल से टकराया।
जो विश्व विजय करने निकला, अपने निर्णय पर पछताया॥

दो धड़े खड़े हैं लड़ने को, अरमान लिए हैं बड़े-बड़े।
कवि को लगता मानाभिमान, टकरा बैठे हैं अड़े-पड़े॥

दोनों जो एक दूसरे को, अपना धुर बैरी जान रहे।
हम ही संसार जीत लेंगे, इस भ्रम को सच्चा मान रहे॥

उनसे कवियों का कहना है, यह युद्ध त्याग दो हारोगे।
वे जंग हार कर हारेंगे, तुम जंग जीत कर हारोगे॥

दोनों की हार सुनिश्चित है, वाणी आभास गृहीता है।
या फिर बतला दो दुनिया में, कर युद्ध कौन नर जीता है॥

हिंसक पशुता जो जाग उठी, दोनों दोनों को मारेंगे।
पीढ़ियाँ सहेंगी कष्ट बहुत, मानव मानवता हारेंगे॥

भीषण से भीषण रण भी जब, रुक जाते हों संवादों से।
तो फिर ऐसी क्या बात जिसे, हम रोक न सकें इरादों से॥

हो उठा बहुत विकराल युद्ध, हर ओर मिसाइल गरज रही।
फिर कैसे कह दूँ मानव की, पशुओं से ऊँची समझ रही॥

जन धन की विकट हानि होगी, विकलांग नए जातक होंगे।
हम अच्छी तरह समझ लें यह, परिणाम बहुत घातक होंगे॥

इसलिए करो संवाद प्रथम, सन्देश भेजना प्रियतर है।
हे सहनशील! कुछ हानि सही, पर युद्ध नहीं श्रेयस्कर है॥

तुम जीतोगे इतना तय है, तब भी झुकने में देर न हो।
हर जीत नाश पर जीती है, समझो लाशों का ढेर न हो॥

अपना डेरा छोटा कर लो, उसका वितान तन जाने दो।
वह अहंकार में डूबा है, इसलिए बड़ा बन जाने दो॥

यह बात मानकर कोई भी, यदि एक पक्ष झुक जाएगा।
तो मैं यह लिखकर देता हूँ यह महानाश रुक जाएगा॥

रण नहीं रुका तो याद रखो, भारी अनिष्ट हो जाएगा।
जो आज तुम्हारा रुतबा है, सब नष्ट-भ्रष्ट हो जाएगा॥

है युद्ध उचित तब जब कोई, अपराधी अत्याचार करे।
है युद्ध उचित तब जब कोई, खल निरपराध पर वार करे॥

है युद्ध उचित तब जब कोई, अधिकार बिना अधिकार करे।
है युद्ध उचित तब जब कोई, पर हित पर घात कुठार करे॥

है युद्ध उचित तब जब कोई, परनारी को लाचार करे।
है युद्ध उचित तब जब कोई, खल शिशुओं का संहार करे॥

है युद्ध उचित तब जब कोई, सामाजिक कुल व्यभिचार करे।
है युद्ध उचित तब जब कोई, पापी फिर पापाचार करे॥

है युद्ध उचित तब जब कोई, निर्बल निर्धन पर वार करे।
है युद्ध उचित तब जब कोई, कवियों का अहित विचार करे॥

है युद्ध उचित तब जब कोई, बेमतलब की तकरार करे।
है युद्ध उचित तब जब कोई, रिपु गर्दन पर तलवार धरे॥

है युद्ध उचित तब जब दुश्मन, तेरी हद में विस्तार करे।
है युद्ध उचित तब जब द्वारे, ललकार भरी हुंकार भरे॥

पहले सोचो सौ बार धीर, फिर क्लान्त बुद्धि को शुद्ध करो।
कोई दुश्मन दुश्मनी रखे, फिर युद्ध करे तब युद्ध करो॥

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया 'प्राण' - इन्दौर (मध्यप्रदेश)

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