धूप में
खोजे है छाँव,
छाँव में गुमसुम-सी है
ये अनमनी जो है
तो ज़िंदगी है।
रात में करवट जो बदले
भोर भए उम्मीद-सी है,
ये आस जो है
तो ज़िंदगी है।
सताए अतीत
भविष्य साँझ दुपहर,
ये फ़िक्र जो है
तो ज़िंदगी है।
अधूरा-सा है
जितना भी पा लो,
ये बेचैनी जो है
तो ज़िंदगी है।
उलझा है
हर धागा सोच का,
चुनर आँसुओं से है बोझल
ये उलझन जो है
तो ज़िंदगी है।
ऋचा सिंह - गोरखपुर (उत्तर प्रदेश)