मकर संक्रांति - गीत - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'

मकर संक्रांति - गीत - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज' | Hindi Geet - Makar Sankranti. मकर सक्रांति पर गीत कविता
आज हुआ किसान फिर धरा मुदित,
नवान्न फ़सल कटाई होती है।
फिर जले अलाव लोहड़ी उत्सव,
बाली गेहूँ आग दी जाती है।

ख़ुशियाँ लेकर आई लोहड़ी,
प्रमुदित किसान मन भाती है।
सुखद अमन मुस्कान अधर पर,
कुसुमित पौरुष महकाती है।

मकर संक्रांति पर्व सनातन जन,
पौष मास शुभदा बन आती है।
धनु राशि विमुख रवि मकर राशि में,
प्रवेश मकर संक्रांति कहलाती है।

हों काले तिल के लड्डू रुचिकर,
मकर संक्रांति ख़ुशी घर लाती है।
उत्तरायण से दक्षिणायन में,
सूर्य प्रवेश अरुणिमा छाती है।

विविध तरीक़ों में यह पुण्योत्सव,
ले संक्रांति लोहड़ी आती है।
ले तिल गुड़ चावल कर दान पुण्य,
रवि शनि कृपा दृष्टि बरसाती है।

पा वरदान सूर्य शनिदेव मुदित,
रवि प्रवेश मकर दुनिया भाती है।
घर धन धान्य सुखद पा कीर्ति धवल,
रवि शनि कृपा प्रगति इठलाती है।

मनभावन सुखमय जग अभिलाष हृदय,
उल्लास नवल लोहड़ी लाती है।
पावन सरिता सलिला स्नान मुदित,
रवि शनि शिव पूजा हर्षाती है।

मासान्त पौष शीताकुल जन तन,
शुभ संक्रांति लोहड़ी गाती है।
स्वागत वासन्तिक माघी फागुन,
मुस्कान कृषक अधर मनमाती है।

समाज शान्ति सुयश समरसता मन,
मन वैर विभ्रान्ति मिट जाती है।
फिर हरित भरित भू गिरि सरित सलिल,
लोहड़ी संक्रांति सुखद मन भाती है।

मकर संक्रांति रवि अभिनव स्वागत,
शरदाम्बुजा सुरभि महकाती है।
बिहू पूर्व धरा श्यामला भारत,
लोहड़ी सद्भाव जगाती है।


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