कहने को बस चराग़ थे हम - गीत - सिद्धार्थ गोरखपुरी

कहने को बस चराग़ थे हम - गीत - सिद्धार्थ गोरखपुरी | Hindi Geet -  Kahne Ko Bas Charag The Hum - Siddharth Garakhpuri
कहने को बस चराग़ थे हम
काग़ज़ के घर में आग थे हम
अंक से मुझे आँकना ना अब 
शून्य में... अंक से भाग थे हम।

अर्ज़ थी तो बात थी कुछ
मर्ज़ीयों में दम भी था कुछ
ज़्यादा होना... कम हुआ था
ज़्यादे में वैसे कम भी था कुछ
जहाँ हुई बस खाना पूर्ति
काग़ज़ों में विभाग थे हम
कहने को बस चराग़ थे हम
काग़ज़ के घर में आग थे हम।

धुन कोई अच्छी लगी तो
गाना पड़ा रूधे गले से
राख में अब भी तपिश बची है
लम्हा-लम्हा जले थे ऐसे
अच्छा लगा पर समझ न आया
जाने कैसी राग थे हम
कहने को बस चराग़ थे हम
काग़ज़ के घर में आग थे हम।

रंग में रंगहीन द्रव से 
सबमें हम घुल-मिल रहे थे
भावनाएँ बेरंग थी पर
दिल-ज़ुबाँ को सिल रहे थे
सुबह चढ़ा कुछ पल में उतरा
जाने कैसे फाग थे हम
कहने को बस चराग़ थे हम
काग़ज़ के घर में आग थे हम।

सिद्धार्थ गोरखपुरी - गोरखपुर (उत्तर प्रदेश)

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