गाय, बैल, ट्रैक्टर, थ्रैशर, खेत व खलिहान हमारी पहचान हैं
हमारे बेटे सरहद के जवान हैं
हमारी हथेलियों में कुदाल, खुरपी, फरसा व हँसिया के निशान हैं
हम माटी के प्रेमी किसान हैं।
हम धूल, धुआँ, कुआँ व जुआ के गान हैं
हमारे गीतों में गोभी, गन्ना, गेहूँ व धान हैं
हम इन्सान के स्वाभिमान हैं
हम माटी के प्रेमी किसान हैं।
तुम्हारी दृष्टि में देव, हम क्यों प्रकृति के क़रीब हैं?
हम क्यों भूखे नंगे ग़रीब हैं?
हम क्यों अनपढ़, गँवार व नादान हैं?
हम माटी के प्रेमी किसान हैं।
हममें क्या कमी है? हमारी भाषा में नमी है
हमारी संस्कृति श्रम की कोख से जन्मी है
हम देश की आन बान शान हैं
हम माटी के प्रेमी किसान हैं।
गोलेंद्र पटेल - चंदौली (उत्तर प्रदेश)