सिद्धार्थ 'सोहम' - उन्नाओ (उत्तर प्रदेश)
हे पार्थ! सुनो केशव के मन की पुकार - कविता - सिद्धार्थ 'सोहम'
शुक्रवार, अक्तूबर 13, 2023
हे पार्थ! सुनो केशव के मन की पुकार।
गांडीव अगर धर सकते हो
मानो की भूले क्षत्रिय धर्म,
लुटती द्रौपदी की इज़्ज़त को
लुटता नारीत्व सौभाग्य मर्म।
हे प्रथा पुत्र! तुम याद करो,
वो राज-पाठ, कुल, वैभव भी
यह सब कुछ अब तुम पर ही है,
जो उत्तर को प्रतिउत्तर दे
ये प्रतिभा अब बस तुम में ही है।
भूलो न तुम क्षत्रिय हो
जो रण में ललकारे जाने पर
तनिक मात्र संकोच न हो,
तुम वार करो हे प्रथा पुत्र! फिर चाहे वो अपने ही हो।
हे पार्थ! सुनो ये गर्जना मधुसूदन का सम्पूर्ण सार,
अब युद्ध करो रण में आकर, ये केशव के मन की पुकार।
हे प्रथा पुत्र! यदि चिंतित हो, तो होना ये स्वाभाविक है,
यदि लगे की नाव भँवर में है, ये लगना भी स्वभाविक है।
चिंता को चिंतन करने दो, अब कृष्ण तुम्हारा नाविक है॥
पर मत भूलो कि युद्ध में हो, केन्द्र में जिसके नारी है,
नारी के सम्मान के ख़ातिर, अब धर्म युद्ध की बारी है।
जो योद्धा, पूर्व युद्ध से मृत्यु से घबराता है,
मृत्यु बाद में आती है, पहले विवेक मर जाता है।
केशव ये शब्द न बोलो तुम, मृत्यु से मैं न डरता हूँ,
जिन अपनो की गोद में खेला हूँ उनसे कैसे लड़ सकता हूँ।
बस इतना ही सुनकर के ही, केशव का धैर्य भी अब डोल गया,
अब धर्म बचाने के ख़ातिर केशव का स्वरूप ही बदल गया।
उस कुरुक्षेत्र रण भीषण में, केशव स्वरूप सर्वेश लगा,
जब अर्जुन समेत सभी लोगों को केशव में ब्रह्माण्ड दिखा।
हाथ जोड़ बोले अर्जुन, जो भूल हुई वो माफ़ करें,
इस समय मैं विपदा में हूँ, मेरे जीवन का कल्याण करे।
हे प्रथा पुत्र! ये ज्ञान सुनो, इस धरा का तुम इतिहास बनो॥
बस कर्मयोग ही जीवन हो, ये गीता का उपदेश सुनो,
बस युद्ध करो तुम जीवन में, ये केशव का संदेश सुनो।
मैं ब्रह्म दिखाने वाला हूँ, मैं मोक्ष दिलाने वाला हूँ,
इस धरा के कण-कण में मैं ही, मैं सत्य बताने वाला हूँ।
सब कुछ मैं ही करता हूँ, मुझसे पृथ्वी संचालित है,
तुम सभी तो बस अनुयायी हो, मुझमे ये सृष्टि समाहित है।
अब कर्म करो तुम युद्ध करो, ये भगवदगीता का ज्ञान सार,
है महाबहो! हे कौन्तेय! सुनो केशव की मन की पुकार।
उस प्रलयंकारी युद्ध की अपनी एक मीमांशा थी,
फिर चाहे वो इक हिंसा हो, वो केशव की धर्म परिभाषा थी।
असत्य पर सत्य की जीत रही, धर्म के ख़ातिर युद्ध रहा,
वो चाहे कृष्ण की लीला हो, महाभारत का चरितार्थ रहा।
नतमस्तक था सम्पूर्ण विश्व, केशवरूपी वो सरोकार,
थी केशव के मन की पुकार।
थी केशव के मन की पुकार॥
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