वह तुम हो - कविता - रोहित सैनी

वह तुम हो - कविता - रोहित सैनी | Hindi Kavita - Woh Tum Ho - Rohit Saini
"अर्धनारीश्वर" की "अवधारणा"
तुम्हीं से पूर्ण होगी "पायल"
"डमरू" की डम-डम में
जो छन-छन है उधार!
वह तुम हो, वह तुम हो।

इस सुने जीवन में,
तन में-मन में-नयन में!
जो लाए संगीत-तरंग-शीतल-बयार,
वह तुम हो, वह तुम हो।

या कि,
इस अनुरागी-वैरागी-मन में
जब-जब उठे गुबार
या,
जीवन-जलधि में!
जब-जब उठे ज्वार!
मन-नैया को जो पहुँचाए पार,
वह तुम हो, वह तुम हो।

जो देवों को अर्पित कर अश्रु-पूरित-नयन!
करे याचना मृत्यु की देकर समस्त जीवन!
वह! क्षत-विक्षत-जीवन
उस पीड़ित पुरुष का मन
होकर आशा से पूरित
जिसके लिए करे दान सारा व्यापार!
माँगे क्षण-क्षण कुछ और क्षण उधार!
वह तुम हो, वह तुम हो।

रोहित सैनी - जयपुर (राजस्थान)

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