सिंह चढ़ के आई दुर्गा गीत मंगल बज रहा।
घर गली चौराहों पर मंडप तेरा माँ सज रहा॥
शांत कोमल रूप माँ का शांति देकर जाएगा।
सारे ब्रह्मांडो में माँ सम तू न कोई पाएगा॥
अस्त्रों शस्त्रों से सजी माँ का ये मुख पंकज रहा।
सिंह चढ़ के आई...
हे जगतजननी माँ जगदम्बे! जगत को तार दे।
पापियों से हीन हमको इक नया संसार दे॥
दीन दुखियों को तेरे आने से ही धीरज रहा।
सिंह चढ़ के आई...
नौ दिनों तक प्यार माँ का ये जगत अब पाएगा।
माँ शरण देगी उसे जो चरणों में बस जाएगा॥
जिसने माँ को पूजा उसका तेज़ सम सूरज रहा।
सिंह चढ़ के आई...
अब समय बस माँ के चरणों में बिताएगा कमल।
अर्चना पूजा करेगा गीत गाएगा कमल॥
हाज़री देने को माँ की काम सारा तज रहा।
सिंह चढ़ कर आई दुर्गा...
कमल पुरोहित 'अपरिचित' - कोलकाता (पश्चिम बंगाल)